☸️*धम्मपद*☸️
*१. यमक-वग्गो*
*गाथा क्र. १:४*
*४.* *अक्कोच्छि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे ।*
*ये च तं नुपनय्हन्ति वेरं तेसूपसम्मति ।।४।।*
*अनुवाद:* मुझे गाली दी, मुझे मारा, मुझे पराजित किया, - ऐसा जो मन में नहीं सोचता, उसी का वैर (शत्रु) शांत होता है ।। ४।।
Published 10/31/21
☸️ *धम्मपद* ☸️
*१. यमक-वग्गो*
*गाथा क्र. १:३*
*३.* *अक्कोच्छि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे ।*
*ये च तं उपनय्हन्ति वेरं तेसं न सम्मति ।।३।।*
*अनुवाद:* मुझे गाली दी, मुझे मारा, मुझे हरा दिया, मुझे लुट लिया- ऐसी बातें जो सोचते रहते हैं, मन में बांधे रखते हैं, उनका वैर कभी शांत नहीं होता ।। ३।।
Published 09/05/21