Jo Maar Kha Royi Nahin | Vishnu Khare
Listen now
Description
जो मार खा रोईं नहीं | विष्णु खरे तिलक मार्ग थाने के सामने जो बिजली का एक बड़ा बक्स है उसके पीछे नाली पर बनी झु्ग्गी का वाक़या है यह चालीस के क़रीब उम्र का बाप सूखी सांवली लंबी-सी काया परेशान बेतरतीब बढ़ी दाढ़ी अपने हाथ में एक पतली हरी डाली लिए खड़ा हुआ नाराज़ हो रहा था अपनी पांच साल और सवा साल की बेटियों पर जो चुपचाप उसकी तरफ़ ऊपर देख रही थीं ग़ु्स्सा बढ़ता गया बाप का पता नहीं क्या हो गया था बच्चियों से कु्त्ता खाना ले गया था दूध, दाल, आटा, चीनी, तेल, केरोसीन में से क्या घर में था जो बगर गया था या एक या दोनों सड़क पर मरते-मरते बची थीं जो भी रहा हो तीन बेंतें लगी बड़ी वाली को पीठ पर और दो पड़ीं छोटी को ठीक सर पर जिस पर मुण्डन के बाद छोटे भूरे बाल आ रहे थे बिलबिलाई नहीं बेटियाँ एकटक देखती रहीं बाप को तब भी जो अन्दर जाने के लिए धमका कर चला गया उसका कहा मानने से पहले बेटियों ने देखा उसे प्यार, करुणा और उम्मीद से जब तक वह मोड़ पर ओझल नहीं हो गया
More Episodes
चरित्र | तस्लीमा नसरीन  तुम लड़की हो,  यह अच्छी तरह याद रखना  तुम जब घर की चौखट लाँघोगी  लोग तुम्हें टेढ़ी नज़रों से देखेंगे  तुम जब गली से होकर चलती रहोगी  लोग तुम्हारा पीछा करेंगे, सीटी बजाएँगे  तुम जब गली पार कर मुख्य सड़क पर पहुँचोगी  लोग तुम्हें बदचलन कहकर गालियाँ देंगे  तुम हो जाओगी...
Published 09/27/24
पढ़ना मेरे पैर | ज्योति पांडेय मैं गई  जबकि मुझे नहीं जाना था।  बार-बार, कई बार गई।  कई एक मुहानों तक  न चाहते हुए भी…  मेरे पैर मुझसे असहमत हैं,  नाराज़ भी।  कल्पनाओं की इतनी यात्राएँ की हैं  कि अगर कभी तुम देखो  तो पाओगे कि कितने थके हैं ये पाँव!  जंगल की मिट्टी, पहाड़ों की घास और समंदर की रेत...
Published 09/26/24
Published 09/26/24