Description
ऋण फूलों-सा | सुनीता जैन
इस काया को
जिस माया ने
जन्म दिया,
वह माँग रही-कि
जैसे उत्सव के बाद
दीवारों पर
हाथों के थापे रह जाते
जैसे पूजा के बाद
चौरे के आसपास
पैरों के छापे रह जाते
जैसे वृक्षों पर
प्रेम संदेशों के बँधे,
बँधे धागे रह जाते,
वैसा ही कुछ
कर जाऊँ
सोच रही,
माया के धीरज का
काया की कथरी का
यह ऋण
फूलों-सा हल्का-
किन शब्दों में
तोल,
चुकाऊँ
चरित्र | तस्लीमा नसरीन
तुम लड़की हो,
यह अच्छी तरह याद रखना
तुम जब घर की चौखट लाँघोगी
लोग तुम्हें टेढ़ी नज़रों से देखेंगे
तुम जब गली से होकर चलती रहोगी
लोग तुम्हारा पीछा करेंगे, सीटी बजाएँगे
तुम जब गली पार कर मुख्य सड़क पर पहुँचोगी
लोग तुम्हें बदचलन कहकर गालियाँ देंगे
तुम हो जाओगी...
Published 09/27/24
पढ़ना मेरे पैर | ज्योति पांडेय
मैं गई
जबकि मुझे नहीं जाना था।
बार-बार, कई बार गई।
कई एक मुहानों तक
न चाहते हुए भी…
मेरे पैर मुझसे असहमत हैं,
नाराज़ भी।
कल्पनाओं की इतनी यात्राएँ की हैं
कि अगर कभी तुम देखो
तो पाओगे कि कितने थके हैं ये पाँव!
जंगल की मिट्टी, पहाड़ों की घास और समंदर की रेत...
Published 09/26/24