Padhna Mere Pair | Jyoti Pandey
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Description
पढ़ना मेरे पैर | ज्योति पांडेय मैं गई  जबकि मुझे नहीं जाना था।  बार-बार, कई बार गई।  कई एक मुहानों तक  न चाहते हुए भी…  मेरे पैर मुझसे असहमत हैं,  नाराज़ भी।  कल्पनाओं की इतनी यात्राएँ की हैं  कि अगर कभी तुम देखो  तो पाओगे कि कितने थके हैं ये पाँव!  जंगल की मिट्टी, पहाड़ों की घास और समंदर की रेत से भरी हैं बिवाइयाँ।  नाख़ूनों पर पुत गया है- हरा-नीला मटमैला सब रंग;  कोई भी नेलकलर लगाऊँ  दो दिन से ज़्यादा टिकता नहीं।  तुमने कभी देखे हैं क्या  सोच के ठिकाने?  मेरे पाँव पूछते हैं मुझसे  कब थमेगी तुम्हारी दौड़?  मैं बता नहीं पाती, क्योंकि, जानती नहीं!  तुम कभी मिलना इनसे  एकांत में- जब मैं भी न होऊँ।  ये सुनाएँगे तुम्हें  कई वे क़िस्से और बातें  जो शायद अब हम तुम कभी बैठकर न कर पाएँ!  जब मैं न रहूँ  तुम पढ़ना मेरे पैर,  वहाँ मैं लिख जाऊँगी  सारी वर्जनाओं की स्वीकृति;  ठीक उसी क्षण  मेरे पैर भी मेरे भार से मुक्त होंगे! 
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चरित्र | तस्लीमा नसरीन  तुम लड़की हो,  यह अच्छी तरह याद रखना  तुम जब घर की चौखट लाँघोगी  लोग तुम्हें टेढ़ी नज़रों से देखेंगे  तुम जब गली से होकर चलती रहोगी  लोग तुम्हारा पीछा करेंगे, सीटी बजाएँगे  तुम जब गली पार कर मुख्य सड़क पर पहुँचोगी  लोग तुम्हें बदचलन कहकर गालियाँ देंगे  तुम हो जाओगी...
Published 09/27/24
Published 09/26/24
तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की | गुलज़ार तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की क्यूँ इतनी लम्बी होती है चाँदनी रात जुदाई की नींद में कोई अपने-आप से बातें करता रहता है काल-कुएँ में गूँजती है आवाज़ किसी सौदाई की सीने में दिल की आहट जैसे कोई जासूस चले हर साए का पीछा करना आदत है हरजाई...
Published 09/25/24