Rajat Jain 🚩 #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers RaJaT JaiN
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Shri Mahavir Chalisa श्री महावीर चालीसा
Shri Mahavir Chalisa श्री महावीर चालीसा ◆
दोहा :
सिद्ध समूह नमों सदा, अरु सुमरूं अरहन्त।
निर आकुल निर्वांच्छ हो, गए लोक के अंत ॥
मंगलमय मंगल करन, वर्धमान महावीर।
तुम चिंतत चिंता मिटे, हरो सकल भव पीर ॥
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चौपाई :
जय महावीर दया के सागर, जय श्री सन्मति ज्ञान उजागर।
शांत छवि मूरत अति प्यारी, वेष दिगम्बर के तुम धारी।
कोटि भानु से अति छबि छाजे, देखत तिमिर पाप सब भाजे।
महाबली अरि कर्म विदारे, जोधा मोह सुभट से मारे।
काम क्रोध तजि छोड़ी माया, क्षण में मान कषाय भगाया।
रागी नहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी।
प्रभु तुम नाम जगत में साँचा, सुमरत भागत भूत पिशाचा।
राक्षस यक्ष डाकिनी भागे, तुम चिंतत भय कोई न लागे।
महा शूल को जो तन धारे, होवे रोग असाध्य निवारे।
व्याल कराल होय फणधारी, विष को उगल क्रोध कर भारी।
महाकाल सम करै डसन्ता, निर्विष करो आप भगवन्ता।
महामत्त गज मद को झारै, भगै तुरत जब तुझे पुकारै।
फार डाढ़ सिंहादिक आवै, ताको हे प्रभु तुही भगावै।
होकर प्रबल अग्नि जो जारै, तुम प्रताप शीतलता धारै।
शस्त्र धार अरि युद्ध लड़न्ता, तुम प्रसाद हो विजय तुरन्ता।
पवन प्रचण्ड चलै झकझोरा, प्रभु तुम हरौ होय भय चोरा।
झार खण्ड गिरि अटवी मांहीं, तुम बिनशरण तहां कोउ नांहीं।
वज्रपात करि घन गरजावै, मूसलधार होय तड़कावै।
होय अपुत्र दरिद्र संताना, सुमिरत होत कुबेर समाना।
बंदीगृह में बँधी जंजीरा, कठ सुई अनि में सकल शरीरा।
राजदण्ड करि शूल धरावै, ताहि सिंहासन तुही बिठावै।
न्यायाधीश राजदरबारी, विजय करे होय कृपा तुम्हारी।
जहर हलाहल दुष्ट पियन्ता, अमृत सम प्रभु करो तुरन्ता।
चढ़े जहर, जीवादि डसन्ता, निर्विष क्षण में आप करन्ता।
एक सहस वसु तुमरे नामा, जन्म लियो कुण्डलपुर धामा।
सिद्धारथ नृप सुत कहलाए, त्रिशला मात उदर प्रगटाए।
तुम जनमत भयो लोक अशोका, अनहद शब्दभयो तिहुँलोका।
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Shri Mahavir Panch Kalyanak Puja श्री महावीर पंचकल्याणक पूजा
Shri Mahavir Panch Kalyanak Puja श्री महावीर पंचकल्याणक पूजा ★
मोहि राखो हो सरना, श्रीवर्धमान जिनरायजी , मोहि राखो हो सरना
गरभ साढ़ सिट छटलियो थिति, त्रिशला उर अघ-हरना |
सुर सुरपति तित सेव करें नित, मैं पूजों भव-तरना ||
मोहि राखो हो सरना
ॐ ह्रीं आषाढ़शुक्लषष्ठयां गर्भकल्याणप्रप्ताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जनम चैत सित तेरस के दिन, कुंडलपुर कन-वरना |
सुरगिरी सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजों भव हरना ||
मोहि राखो हो सरना
ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लत्रयोदश्यां जन्मकल्याणप्रप्ताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
मगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आरचना|
नृप-कुमार घर पारन कीनों, मैं पूजों तुम चरना ||
मोहि राखो हो सरना
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां तप:कल्याणप्रप्ताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
शुकल दशैं वैशाख दिवस अरि, घाति चतुक छय करना |
केवल लहि भवि भव-सर तारे, जजों चरन सुख भरना ||
मोहि राखो हो सरना
ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
कार्तिक श्याम अमावस शिव-तिय, पावापुर तैं वरना |
गण-फनि-वृन्द जजैं तति बहुविधि, मैं पूजौं भय-हरना ||
मोहि राखो हो सरना
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षकल्याणप्राप्ताय जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । -
Mahavirashtak Stotra महावीराष्टक स्तोत्र
Mahavirashtak Stotra महावीराष्टक स्तोत्र~
यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचित:,
समं भान्ति ध्रौव्य-व्यय-जनि-लसन्तो·न्तरहिता: |
जगत्साक्षी मार्ग-प्रकटनपरो भानुरिव यो,
महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||१||
अताम्रं यच्चक्षु: कमल-युगलं स्पन्द-रहितम्,
जनान्कोपापायं प्रकटयति बाह्यान्तरमपि |
स्फुटं मूर्तिर्यस्य प्रशमितमयी वातिविमला,
महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||२||
नमन्नाकेन्द्राली-मुकुट-मणि-भा-जाल-जटिलम्,
लसत्पादाम्भोज-द्वयमिह यदीयं तनुभृताम् |
भवज्ज्वाला-शान्त्यै प्रभवति जलं वा स्मृतमपि,
महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||३||
यदर्चा-भावेन प्रमुदित-मना दर्दुर इह,
क्षणादासीत्स्वर्गी गुण-गण-समृद्ध: सुख-निधि: |
लभन्ते सद्भक्ता: शिव-सुख-समाजं किमु तदा,
महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||४||
कनत्स्वर्णाभासोऽप्यपगत-तनुर्ज्ञान-निवहो,
विचित्रात्माप्येको नृपति-वर-सिद्धार्थ-तनय: |
अजन्मापि श्रीमान् विगत-भव-रागोऽद्भुत-गतिर्,
महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||५||
यदीया वाग्गङ्गा विविध-नय-कल्लोल-विमला,
वृहज्ज्ञानाभ्भोभिर्जगति जनतां या स्नपयति |
इदानीमप्येषा बुध-जन-मरालै: परिचिता,
महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||६||
अनिर्वारोद्रेकस्त्रिभुवन-जयी काम-सुभट:,
कुमारावस्थायामपि निज-बलाद्येन विजित: |
स्फुरन्नित्यानन्द-प्रशम-पद-राज्याय स जिन:,
महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||७||
महामोहातंक-प्रशमन-पराकस्मिकभिषक्,
निरापेक्षो बन्धुर्विदित-महिमा मंगलकर: |
शरण्य: साधूनां भव-भयभृतामुत्तमगुणो,
महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||८||
(अनुष्टुप्)
महावीराष्टकं स्तोत्रं भक्त्या ‘भागेन्दुना’ कृतम् |
य: पठेच्छ्रुणेच्चापि स याति परमां गतिम् || -
Ganga Chalisa गंगा चालीसा
Shri Ganga Chalisa श्री गंगा चालीसा ★
पतित पावनी गंगाजल का आचमन और स्नान।
कर ले जो एक बार जन्म में उसे मिले निवांन॥
मुक्तिदायिनी जय जय गंगे। जय हरि पद जल सुधा तरंगे ॥ जय माँ सिव की जटा निवासिनि। तुम हो सब जीवन्ह की तारिनि ।
गंगोत्री से हुयी प्रवाहित । धरा पे तुम्हरी धारा अमृत ।॥
पुनि पुनि मैं करूं विनय तुम्हारी। सुनो सगर कुल तारनहारी ॥
भगीरथ तप से भूमि पे आई। माँ तुम भगीरधी कहलाई॥
सिव की जटा में बास बनाया। तुममें है सब तीर्थ समाया ॥
जहनु के मुख में जाय समाई। निकल कान से फिर लहराई।
हुआ जाह्नवी नाम तुम्हारा। माँ तुम सब का पाप निवारा।
मकर श्वेत अति विकट बिसाला। उसे बनाकर वाहन पाला॥
श्वेत वस्त्र वर मुद्रा शुभकर। चार कलश हाथों में सुन्दर ।
धवल प्रकाशित शुभ मनोहर। हीरक जटित मुकुट मस्तक पर ।।
मुख छवि कोटिक चन्द्र समाना। देखत कलिमल सकल नसाना ।
चारों जुग में गंगा धारा । कर देती भव सागर पारा॥
सब तीरथ तुम्हरे गुन गावें। जग अध का सब भार मिटावें ॥
ऋषीकेश में तुम्हरी तरंगा। हरिद्वार में हर हर गंगा ।।
शोभित तीरथ राज प्रयागा। तीर्थ त्रिवेनी का जस जागा।
रवि तनया जमुना की धारा । श्यामल शुभ रंग अपारा ॥
सरस्वती अलखित गुन श्रेनी। सब मिल निर्मित भई त्रिवेनी॥
स्याम धवल जल देख हिलोरें। देव दनुज नर चरन अगोरें।
नित नित पावें ब्रह्मानन्दा। छूट कोटि जनम कर फंदा॥
विन्ध्याचल गिरि वृहद अपारा। जेहि कर सागर तक विस्तारा ॥
अष्टभुजा के चरण से उपजत। विन्ध्यवासिनी कर पद सेवत।
तुम्हरे चरण कमल में झुक कर। निस दिन विनय करत सौ गिरिवर ।।
कासी महिमा जाय न बरनी। तहाँ भी तुम राजत सुखकरनी ॥
पारबती संग सिव सुख रमना । हम सब को राखो निज सरना ।
जनम जनम संग सब परिवारा। पाइ जनम जहँ गंगा धारा ।
सिव त्रिसूल वसि कासी नगरी। वहीं मुक्ति हो माता हमरी ॥
तुम्हरा कर के सुमिरन पू -
Davanal Sanharan Stotram दावानल संहरण स्तोत्रम्
Davanal Sanharan Stotram दावानल संहरण स्तोत्रम् ◆
यथा संरक्षितं ब्रह्मन् सर्वापत्स्वेव नः कुलम् ।
तथा रक्षां कुरु पुनर्दावाग्रेर्मधुसूदन ॥ १ ॥
त्वमिष्टदेवतास्माकं त्वमेव कुलदेवता ।
वन्हिर्वा वरुणो वापि चन्द्रौ वा सूर्य एव वा ॥ २ ॥
यमः कुबेरः पवन ईशानाद्याश्र्च देवताः ।
ब्रह्मेशशेषधर्मेन्द्रा मुनीन्द्रा मनवः स्मृता: ॥ ३ ॥
मानवाश्र्च तथा दैत्या यक्षराक्षसकिन्नराः ।
ये ये चराचराश्र्चैव सर्वे तव विभूतयः ॥ ४ ॥
स्रष्टा पाता च संहर्ता जगतां च जगत्पते ।
आविर्भावस्तिरोभावः सर्वेषां च तवेच्छया ॥ ५ ॥
अभयं देहि गोविन्द वन्हिसंहरण कुरु ।
वयं त्वां शरणं यामो रक्ष नः शरणागतान् ॥ ६ ॥
इत्येवमुक्त्वा ते सर्वे तस्थुर्ध्यात्वा पदाम्बुजम् ।
दूरीकृतश्र्च दावाग्निः श्रीकृष्णामृतदृष्टितः ॥ ७ ॥
दूरीभूतेऽत्र दावाग्नौ विपत्तौ प्राणसंकटे ।
स्तोत्रमेतत् पठित्वा च मुच्यते नात्र संशयः ॥ ८ ॥
शत्रुसैन्यं क्षयं याति सर्वत्र विजयी भवेत् ।
इहलोके हरेर्भक्तिमन्ते दास्यं लभेद् ध्रुवम् ॥ ९ ॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराणे श्रीकृष्णजन्मखंडे दावानल संहरण स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥ -
Yuktyanushasana by Acharya Samantabhadra आचार्य समंतभद्र विरचित युक्त्यनुशासन
Yuktyanushasana by Acharya Samantabhadra आचार्य समंतभद्र विरचित युक्त्यनुशासन ★