Description
क्या एक समाज के तौर पर हम दिन पर दिन संवेदनहीन होते जा रहे हैं? क्या हिंसा और नफरत का भाव संवेदनाओं को खोते जा रहे हमारे समाज से रिसकर हमारे अंतर्मन को अपनी जकड़ में लेता जा रहा है और हमें अहसास भी नहीं हो रहा है कि हम कैसी मानसिक स्थिति में जाने अनजाने धकेले जा रहे हैं