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Vedo ka satya, vedo ki vani

श्रीमद भागवद पुरा‪ण‬ Shrimad Bhagwad Mahapuran

    • Religion & Spirituality

Vedo ka satya, vedo ki vani

    Tantra vidya

    Tantra vidya

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    तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।तंत्रिका कोशिका।।


    तंत्र क्या है!तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।

    तंत्र कहते ही तांत्रिक मन में आता है, एक अर्ध पागल सा बड़बड़ाता हुआ व्यक्ति।


    तंत्र का मतलब होता है व्यवस्था, तंत्रिका तंत्र,गणतंत्र, लोकतंत्र, स्नायु तंत्र, तो यहां जो बात हो रही है वह है शरीर विज्ञान की।


     साथ में आत्मा भी, क्योंकि ज्ञान का बोध करने वाली तो वही है न बन्धु।


    एक मित्र है  वे आज पूछ रहे थे कि जग्गी वासुदेव कहते हैं शरीर मरने के 3-4 घण्टे बाद तक भी शरीर में व्यान प्राण रहता है, मरने के 12-13 घण्टे बाद भी उदान प्राण रहता है, अगर सही से तांत्रिक क्रियाएं की जाएं तो व्यक्ति को जीवित किया जा सकता है,,आपकी क्या राय है??


     कोई क्या कहते हैं और किस आधार पर ये वे खुद जानें, मैं सिर्फ ऋषियों पर भरोसा करता हूँ या ऋषिकृत शास्त्रों पर। अपने पूर्वज ऋषियों ने कुछ अलग ही बताया है, महर्षि योगसूत्रों में कह रहे हैं--


    नाभिचक्रे कायव्यूहज्ञानम--नाभिचक्र में ध्यान लगाने से योगी शरीर संरचना को भली भांति जान लेता है,,  

    नाभि में जो चक्र है उसका नाम है मणिपुर चक्र, कपालभाति जो क्रिया है वह उसी को तो सबसे ज्यादा जल्दी एक्टिवेट करती है जिसे आजकल बाज़ार में कुंडलिनी जागरण के नाम से बेचा जा रहा है, खैर अपना विषय अलग है।


    मैंने सैकड़ों स्कूल कालेजों में बच्चों से पूछा है,, तथाकथित तांत्रिकों से भी, ये बताइए महाराज शरीर में कितनी चीजें हैं जो धड़कती हैं, बताने वाले सबसे पहले हृदय बताते हैं, फिर नाड़ी बताते हैं। हाथ की जिसे नस भी कह दे रहे हैं, लेकिन नाड़ी तो रक्त और हृदय के आधार पर धड़कती है उसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, फिर और क्या है जो धड़कता है??


    इस बात पर तांत्र

    • 4 min
    Jaikaal Mahakaal Vikraal Shambhu

    Jaikaal Mahakaal Vikraal Shambhu

    Jaikaal mahakal #devotion

    • 2 min
    हनुमान जी की पूर्ण कृपा के लिए केवल एक काम करें। श्री शिव चालीसा।

    हनुमान जी की पूर्ण कृपा के लिए केवल एक काम करें। श्री शिव चालीसा।

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    श्री शिव चालीसा / चालीसा

    दोहा

    अज अनादि अविगत अलख, अकल अतुल अविकार।
    बंदौं शिव-पद-युग-कमल अमल अतीव उदार।। 1।।
    आर्तिहरण सुखकरण शुभ भक्ति-मुक्ति-दातार।
    करौ अनुग्रह दीन लखि अपनो विरद विचार।। 2।।
    पर्यो पतित भवकूप महँ सहज नरक आगार।
    सहज सुहृद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार।। 3।।
    पलक-पलक आशा भर्यो, रह्यो सुबाट निहार।
    ढरौ तुरंत स्वभाववश, नेक न करौ अबार।। 4।।


    जय शिव शंकर औढरदानी। जय गिरितनया मातु भवानी ।। 1 ।।

    सर्वोत्तम योगी योगेश्वर। सर्वलोक-ईश्वर-परमेश्वर।। 2 ।।

    सब उर प्रेरक सर्वनियन्ता। उपद्रष्टा भर्ता अनुमन्ता।। 3 ।।

    पराशक्ति-पति अखिल विश्वपति। परब्रह्म परधाम परमगति।। 4 ।।

    सर्वातीत अनन्य सर्वगत। निजस्वरूप महिमा में स्थितरत।। 5 ।।

    अंगभूति-भूषित श्मशानचर। भुंजगभूषण चन्द्रमुकुटधर।। 6 ।।

    वृष वाहन नंदी गणनायक। अखिल विश्व के भाग्य विधायक।। 7 ।।

    व्याघ्रचर्म परिधान मनोहर। रीछचर्म ओढे गिरिजावर।। 8 ।।

    कर त्रिशूल डमरूवर राजत। अभय वरद मुद्रा शुभ साजत।। 9 ।।

    तनु कर्पूर-गौर उज्ज्वलतम। पिंगल जटाजूट सिर उत्तम।। 10 ।।

    भाल त्रिपुण्ड मुण्डमालाधर। गल रूद्राक्ष-माल शोभाकर।। 11 ।।

    विधि-हरी-रूद्र त्रिविध वपुधारी। बने सृजन-पालन-लयकारी।। 12 ।।

    तुम हो नित्य दया के सागर। आशुतोष आनन्द-उजागर।। 13 ।।

    अति दयालु भोले भण्डारी। अग-जग सब के मंगलकारी।। 14 ।।

    सती-पार्वती के प्राणेश्वर। स्कन्द-गणेश-जनक शिव सुखकर।। 15 ।।

    हरि-हर एक रूप गुणशीला। करत स्वामि-सेवक की लीला।। 16 ।।

    रहते दोउ पूजत पूजवावत। पूजा-पद्धति सबन्हि सिखावत।। 17 ।।

    मारूति बन हरि-सेवा कीन्ही। रामेश्वर बन सेवा लीन्ही।। 18 ।।

    जग-हित घोर हलाहल पीकर। बने सदाशिव नीलकण्ठ वर।। 19 ।।

    असुरासुर शुचि वरद शुभंकर। असुरनिहन्ता प्रभु प्रलयंकर।। 20 ।।

    ‘नमः शिवायः’ मंत्र पं

    • 4 min
    Shrimad Bhagwad Mahapuran Mangla charan

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    Detailed description of Shrimad Bhagwad Puran, same as described in Hindu granths.
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    • 1 min
    हिन्दु धर्म में आहार

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    • 1 min
    श्रीमद भागवद पुराण चौदहवां अध्याय [स्कंध ५] (भवावटी की प्रकृति अर्थ वर्णन)

    श्रीमद भागवद पुराण चौदहवां अध्याय [स्कंध ५] (भवावटी की प्रकृति अर्थ वर्णन)

    श्रीमद भागवद पुराण चौदहवां अध्याय [स्कंध ५]
    (भवावटी की प्रकृति अर्थ वर्णन)

    दो०-रूपक धरि कहि जड़ भरत, राजा दियौ समझाय।
    भिन्न भिन्न कर सब कहयौ, चौदहवें अध्याय ।।

    श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! जब जड़ भरत ने राजा रहूगण को इस प्रकार एक रूपक सुनाकर ज्ञान दिया तो, हाथ जोड़कर राजा रहूगण विनय बचन कह जड़ भरत से बोला-

    --महाराज ! आपके इस कथन को सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह बंजारा समूह इतना बलिष्ठ होकर भी जिसके पास धन आदि सब कुछ है फिर चोरों से लुटता है और सबके सब मार्ग भूल बन में भटकते फिरते हैं, तथा एक-एक कर के कुये में गिरकर प्राणों की रक्षा का ध्यान न करके उस एक बूँद मधु का आनन्द पाकर मृत्यु को भूल जाता है। सो यह प्रसंग आप मुझे पूर्णरूप से भिन्न-भिन्न करके समझाइये । वह बंजारा अपने को बचाने के लिये डाली को पकड़कर ऊपर क्यों न चढ़ आया और उस मधु का लोभ क्यों न त्यागा?

    रहूगण के यह बचन न जड़ भरत ने कहा- हे राजन ! ऐसी ही दशा जैसी कि उस बंजारे के समूह की है, तुम्हारी और अन्य सभी संसारी मनुष्यों की भी है।

    सब मनुष्य हर प्रकार के उद्यम करने पर भी संतोष नहीं करता और अधिक से अधिक लोभ बढ़ता जाता है, और परिणाम यह है, कि वह इस संसार चक्र से छूटने के लिये दो घड़ी का समय निकाल कर अपने पैदा करने वाले परमात्मा का स्मरण तक भी नहीं करता है। जब कभी कोई उसे उपदेश करता है कि भाई ! तुम कुछ समय निकाल कर भगवान का भजन तो कर लिया करो। तब वह तपाक से यही कहता है कि क्या करें भाई काम काज से इतना समय ही नहीं मिलता हैं कि भगवान का दो घड़ी भर भजन करे।

    ॥ सो हे राजा रहूगण ! मैंने तुम्हें जो रूपक सुनाया है वह इसी प्रकार जानो

    कि यह समस्त जीव समूह बंजारा समूह ही जानो जोकि धनोपार्जन करने के लिये संसार रूप मार्ग में चल पड़ा है। तब वह मार्ग में वन में जाके फँस जाता है अर्थात, वह अपने शरीर क

    • 6 min

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