"कपलानी" Hindi short audio story| Hindi Short Story| Story telling
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Description
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem# Shoonya Theatre group presents Mayank's  "कप्लानि", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem/stiry through sound ,music and power of narration. "कपलानी"  पहाड़ों में बसा एक छोटा सा गाँव ..... बादलों के बीच लुकाछिपी खेलता , टिम-टिमाते  तारों की  छाओं में सोता ....कभी साफ़ आसमान   दूर तक धूप में चमकते सुनहरे बर्फ से ढके विशाल पहाड़ तो कभी घनी ठिठुरा देने वाली धुंध । शहर की हल-चल से दूर ......शांत ..... | झरने से गिरते पानी की कलकलहाट  .........  दूर कहीं चारा चरती गाए  के गले में बंधी  घंटी की रुक रुक कर आती टनटनाहट।  ऐसा सुकून जो मन को पल भर में शांत  करदे ।  यहाँ कभी ही कोई भूले भटके सैलानी आया होगा  , जो भी आया  इस गाँव का  होकर रह गया ।  हलाकि सबसे पास का रेलवे स्टेशन ऐसा कोई खासा दूर नहीं मगर स्टेशन से उतर कर 10 किलोमीटर की चढ़ाई हर किसी के  बस की बात कहाँ और इतनी  दूर दराज़ जगह में कौन जाना पसंद करेगा।  शंकर और विष्णु इसी गाँव के दो लड़के हर दिन स्कूल के  बाद स्टेशन पर जाकर आती जाती रेल गाड़ियों को घंटों देखा करते  ..... यात्रियों को.....उनके चमकदार सूट -बूट .... सिल्वर रंग की चमचमाती घड़ियों की तरफ आकर्षित होते।  विष्णु अखबार  बेच और शंकर  जूते चमका  घर के लिए कुछ पैसे भी कमाते । इस स्टेशन पर कभी कभार ही कोई ट्रैन ठहरती  , दोनों के मन में हमेशा ये जिज्ञासा रहती की आखिर ये बने-ठणे लोग कहाँ से आते हैं और इतनी जल्दी में कहाँ निकल जाते हैं ,ना खाने का समय ना रुक कर बात करने की फुर्सत ,जो मन  में आया खाया जो मन आया खरीदा ।  "इनके गाँव कैसे होते  होंगे क्या वहां भी झरने बहते होंगे "..... ऐसे स्वाभाविक सवाल भला दोनों के छोटे से मन में कैसे ना उठते  | 6 बजे की आखिरी ट्रैन "दून एक्सप्रेस" के चले जाने के बाद घर के रास्ते में दोनों अक्सर शहर की बातें किया करते वहां के कपड़ों , लज़ीज़ पकवानों के सपने देखा करते।  सोमवार की बात थी हर शाम की तरह व
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Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's  "सीढ़ियाँ", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration. सीढ़ियाँ सीढ़ियाँ  चढ़ते हुए जो उतरना  भूल जाते हैं वे घर नहीं  लौट पाते क्योंकि...
Published 11/20/22
Published 11/20/22
Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's  "औकात", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration. औकात वे पत्थरों को पहनाते हैं लँगोट पौधों को चुनरी और घाघरा पहनाते हैं वनों, पर्वतों और आकाश की नग्नता...
Published 09/11/22