Esa badla hoon mein tere shehar ka pani peekar jhoot bolun bhi to nadamat nhi hoti mujhko. Shayari
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Description
Nazm :- Ab teri yaad se wahshat nhi hoti mujhko. Poet :-. Shahid Zaki. Recited by :- Faiz Ahmed اب تری یاد سے وحشت نہیں ہوتی مجھ کو زخم کھلتے ہیں اذیت نہیں ہوتی مجھ کو اب کوئی آئے چلا جائے میں خوش رہتا ہوں اب کسی شخص کی عادت نہیں ہوتی مجھ کو ایسا بدلا ہوں ترے شہر کا پانی پی کر جھوٹ بولوں تو ندامت نہیں ہوتی مجھ کو ہے امانت میں خیانت سو کسی کی خاطر کوئی مرتا ہے تو حیرت نہیں ہوتی مجھ کو تو جو بدلے تری تصویر بدل جاتی ہے رنگ بھرنے میں سہولت نہیں ہوتی مجھ کو اکثر اوقات میں تعبیر بتا دیتا ہوں بعض اوقات اجازت نہیں ہوتی مجھ کو اتنا مصروف ہوں جینے کی ہوس میں شاہدؔ سانس لینے کی بھی فرصت نہیں ہوتی مجھ کو अब तिरी याद से वहशत नहीं होती मुझ को ज़ख़्म खुलते हैं अज़िय्यत नहीं होती मुझ को अब कोई आए चला जाए मैं ख़ुश रहता हूँ अब किसी शख़्स की आदत नहीं होती मुझ को ऐसा बदला हूँ तिरे शहर का पानी पी कर झूट बोलूँ तो नदामत नहीं होती मुझ को है अमानत में ख़यानत सो किसी की ख़ातिर कोई मरता है तो हैरत नहीं होती मुझ को तू जो बदले तिरी तस्वीर बदल जाती है रंग भरने में सुहूलत नहीं होती मुझ को अक्सर औक़ात मैं ता'बीर बता देता हूँ बाज़ औक़ात इजाज़त नहीं होती मुझ को इतना मसरूफ़ हूँ जीने की हवस में 'शाहिद' साँस लेने की भी फ़ुर्सत नहीं होती मुझ को Search our channel on YouTube 'Alfaz e Qalb'.
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Poet. Allama Iqbal. Recital Faiz Ahmed.
Published 02/13/22
Published 02/13/22
Written by :- Faiz Ahmed. Recited by :- Faiz Ahmed. Record and presented by:- Alfaz e Qalb. Search Alfaz e Qalb on YouTube.
Published 08/05/21