Description
माना के उस वक़्त.....मैं वो हस्ती नहीं था के तुझे सोने के रथ पर बिठा कर आसमा की सैर करा पाता....
मैं वो हस्ती भी नहीं था के तेरे मरमरी बदन को हीरे जवाहरात से सजा पाता.....तुझपे मोती लुटा पाता....
मगर...मैं वो दीवाना जरूर था जिसे तेरे होठों की एक एक मुस्कुराहट पे तबाह हो जाना मंजूर था...
...मैं वो परवाना जरूर था जिसे तेरी एक एक खुशी के लिए जलकर फनाह होता जाना भी मंजूर था...
याद हैं ना तुझे ...वो लम्हे हमारी मौहब्बत के...
क्या याद है तुझे आज भी..
वो सूरज की तपिश
वो सफ़र- ए - इश्क़
एक मैं - एक तू ....और
साइकिल पर हम दोनों
हमारी मोहब्बत...हमारा इश्क़