VO LAMHE
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Description
माना के उस वक़्त.....मैं वो हस्ती  नहीं था के तुझे सोने के रथ पर बिठा कर आसमा की सैर करा पाता.... मैं वो हस्ती भी नहीं था के तेरे मरमरी बदन को हीरे जवाहरात  से सजा पाता.....तुझपे मोती लुटा पाता.... मगर...मैं वो दीवाना जरूर था जिसे तेरे होठों की एक एक मुस्कुराहट पे तबाह हो जाना मंजूर था... ...मैं वो परवाना जरूर था जिसे तेरी एक एक खुशी के लिए जलकर फनाह होता जाना भी मंजूर था... याद हैं ना तुझे ...वो लम्हे हमारी मौहब्बत के... क्या याद है तुझे आज भी.. वो सूरज की तपिश  वो सफ़र- ए - इश्क़  एक मैं - एक तू ....और  साइकिल पर हम दोनों  हमारी मोहब्बत...हमारा इश्क़
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तू वो ग़ज़ल है मेरी  जिसमें तेरा होना तय है  तू वो नज्म है मेरी  जिसमें आज भी तेरी मौजूदगी तय है  इसलिये नहीं... कि...  तू मेरी दस्तरस में है  बल्कि इसलिये...कि... तू आज भी मेरी नस - नस में है  इसलिए हो चाहे ये कितना ही लंबा सफ़र  ना थकेगा ना रुकेगा ये कारवाँ  ना छूटेगी ये डगर  क्यों...
Published 11/21/24
Published 11/21/24
कैसे भुला पाउंगा उस कठिन वक़्त को...कैसे भुला पाउंगा तुम्हारे उस असहनीय कष्ट को...जब तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में था...और तुम अंतिम साँस लेने की तैयारी कर रही थीं...मगर फ़िर भी मुझसे कुछ कहना चाह रहीं थीं...क्योंकि तुम काल के हाथों विवश होकर हमेशा हमेशा के लिये ना चाहते हुए भी मुझसे दूर जा रहीं...
Published 11/09/24