Description
जवानी जब से बहकी थी उसी का नाम लेती थी
मोहब्बत प्यास है उसकी यही पैगाम देती थी
मैं मजनूं था मैं रांझा था वो लैला हीर जैसी थी
मेरी चाहत के ज़ज्बो को मेरा ईमान कहती थी
मगर अब....
जो समझती थी इशारों को इशारों ही इशारों में
भुलाके उन नज़ारो को मेरा अब दिल दुखाती है
ना कहती है ना सुनती है बड़ी खामोश रहती है
मेरे इश्क़-ए- बहारा में वो तीर-ए-ग़म चलाती है
ज़माना मुझसे कहता है दीवाने क्यूँ तू रोता है
उसे कैसे मैं समझाऊं यही तो प्यार होता है.....