You, me and our feelings
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क्या खूब समा था  इश्क़ के महीने में - इश्क़ जवां था  मौसम के थे नजारे  आंखों के थे इशारे  बातों में कशिश थी इतनी  लहजे में तपिश थी इतनी  जिस्म था - आग थी  हर छुअन में एक धुआं था  हसीना थी कमसिन  दीवाना जवां था  इश्क़ के महीने में इश्क़ भी जवां था  .....ऐसे ही थे एहसास हमारे.....
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तू वो ग़ज़ल है मेरी  जिसमें तेरा होना तय है  तू वो नज्म है मेरी  जिसमें आज भी तेरी मौजूदगी तय है  इसलिये नहीं... कि...  तू मेरी दस्तरस में है  बल्कि इसलिये...कि... तू आज भी मेरी नस - नस में है  इसलिए हो चाहे ये कितना ही लंबा सफ़र  ना थकेगा ना रुकेगा ये कारवाँ  ना छूटेगी ये डगर  क्यों...
Published 11/21/24
Published 11/21/24
कैसे भुला पाउंगा उस कठिन वक़्त को...कैसे भुला पाउंगा तुम्हारे उस असहनीय कष्ट को...जब तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में था...और तुम अंतिम साँस लेने की तैयारी कर रही थीं...मगर फ़िर भी मुझसे कुछ कहना चाह रहीं थीं...क्योंकि तुम काल के हाथों विवश होकर हमेशा हमेशा के लिये ना चाहते हुए भी मुझसे दूर जा रहीं...
Published 11/09/24