☸️ *धम्मपद* ☸️
*१. यमक-वग्गो*
*गाथा क्र. १:१*
Description
*नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस ।।।*🌷🌷🌷🙏🙏🙏
☸️ *धम्मपद* ☸️
*१. यमक-वग्गो*
*गाथा क्र. १:१*
*१.* *मनोपुब्बड़ग्मा धम्मा मनोसेट्ठा मनोमया।*
*मनसा चे पदुट्ठेन भासति वा करोति वा।*
*ततोनं दुक्खमन्वेति चक्कं 'व वहतो पदो।।१।।*
*अनुवाद:* सभी शाररीरिक, वाचिक और चैतसिक कर्म पहले मन में उत्पन्न होते हैं। मन ही मुखिया है, अतः वे मनोमय हैं। जब व्यक्ति सदोष मन से बोलता है, काम करता है तो वह कष्ट, दुःख को उसी प्रकार भोगता है, जैसे बैलगाड़ी के पहिये बैल के पैरों के पीछे-पीछे आते हैं।। १।।
☸️*धम्मपद*☸️
*१. यमक-वग्गो*
*गाथा क्र. १:४*
*४.* *अक्कोच्छि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे ।*
*ये च तं नुपनय्हन्ति वेरं तेसूपसम्मति ।।४।।*
*अनुवाद:* मुझे गाली दी, मुझे मारा, मुझे पराजित किया, - ऐसा जो मन में नहीं सोचता, उसी का वैर (शत्रु) शांत होता है ।। ४।।
Published 10/31/21
☸️ *धम्मपद* ☸️
*१. यमक-वग्गो*
*गाथा क्र. १:३*
*३.* *अक्कोच्छि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे ।*
*ये च तं उपनय्हन्ति वेरं तेसं न सम्मति ।।३।।*
*अनुवाद:* मुझे गाली दी, मुझे मारा, मुझे हरा दिया, मुझे लुट लिया- ऐसी बातें जो सोचते रहते हैं, मन में बांधे रखते हैं, उनका वैर कभी शांत नहीं होता ।। ३।।
Published 09/05/21