आ ग्ना अ॑ग्न इ॒हाव॑से॒ होत्रां॑ यविष्ठ॒ भार॑तीम्। वरू॑त्रीं धि॒षणां॑ वह॥ - ऋग्वेद 1.22.10
पदार्थ -
हे (यविष्ठ) पदार्थों को मिलाने वा उनमें मिलनेवाले (अग्ने) क्रियाकुशल विद्वान् ! तू (इह) शिल्पकार्य्यों में (अवसे) प्रवेश करने के लिये (ग्नाः) पृथिवी आदि पदार्थ (होत्राम्) होम किये हुए पदार्थों को बहाने (भारतीम्) सूर्य्य की प्रभा (वरूत्रीम्) स्वीकार करने योग्य दिन रात्रि और (धिषणाम्) जिससे पदार्थों को ग्रहण करते हैं, उस वाणी को (आवह) प्राप्त हो॥
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(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)
(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)
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