ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 22. मंत्र 14
Description
तयो॒रिद्घृ॒तव॒त्पयो॒ विप्रा॑ रिहन्ति धी॒तिभिः॑। ग॒न्ध॒र्वस्य॑ ध्रु॒वे प॒दे॥ - ऋग्वेद 1.22.14
पदार्थ -
जो (विप्राः) बुद्धिमान् पुरुष जिनसे प्रशंसनीय होते हैं (तयोः) उन प्रकाशमय और अप्रकाशमय लोकों के (धीतिभिः) धारण और आकर्षण आदि गुणों से (गन्धर्वस्य) पृथिवी को धारण करनेवाले वायु का (ध्रुवे) जो सब जगह भरा निश्चल (पदे) अन्तरिक्ष स्थान है, उसमें विमान आदि यानों को (रिहन्ति) गमनागमन करते हैं, वे प्रशंसित होके, उक्त लोकों ही के आश्रय से (घृतवत्) प्रशंसनीय जलवाले (पयः) रस आदि पदार्थों को ग्रहण करते हैं॥
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(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)
(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)
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