ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 23. मंत्र 2
Listen now
Description
उ॒भा दे॒वा दि॑वि॒स्पृशे॑न्द्रवा॒यू ह॑वामहे। अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑॥ - ऋग्वेद 1.23.2  पदार्थ - हम लोग (अस्य) इस प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष (सोमस्य) उत्पन्न करनेवाले संसार के सुख के (पीतये) भोगने के लिये (दिविस्पृशा) जो प्रकाशयुक्त आकाश में विमान आदि यानों को पहुँचाने और (देवा) दिव्यगुणवाले (उभा) दोनों (इन्द्रवायू) अग्नि और पवन हैं, उनको (हवामहे) साधने की इच्छा करते हैं॥ ------------------------------------------- (भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी) (सविनय आभार: www.vedicscriptures.in) --- Send in a voice message: https://anchor.fm/daily-one-ved-mantra/message
More Episodes
अ॒मी य ऋक्षा॒ निहि॑तास उ॒च्चा नक्तं॒ ददृ॑श्रे॒ कुह॑ चि॒द्दिवे॑युः। अद॑ब्धानि॒ वरु॑णस्य व्र॒तानि॑ वि॒चाक॑शच्च॒न्द्रमा॒ नक्त॑मेति॥ - ऋग्वेद 1.24.10  पदार्थ - हम पूछते हैं कि जो ये (अमी) प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष (ऋक्षाः) सूर्य्यचन्द्रतारकादि नक्षत्र लोक किसने (उच्चाः) ऊपर को ठहरे हुए (निहितासः)...
Published 07/18/22
Published 07/18/22
श॒तं ते॑ राजन्भि॒षजः॑ स॒हस्र॑मु॒र्वी ग॑भी॒रा सु॑म॒तिष्टे॑ अस्तु। बाध॑स्व दू॒रे निर्ऋ॑तिं परा॒चैः कृ॒तं चि॒देनः॒ प्र मु॑मुग्ध्य॒स्मत्॥ - ऋग्वेद 1.24.9  पदार्थ - (राजन्) हे प्रकाशमान प्रजाध्यक्ष वा प्रजाजन ! जिस (भिषजः) सर्व रोग निवारण करनेवाले (ते) आपकी (शतम्) असंख्यात औषधि और (सहस्रम्)...
Published 07/17/22