गीता सार – अध्याय 04
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ज्ञानकर्मसंन्यासयोग इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने Geeta का पौराणिक इतिहास बताया है। सबसे पहले उन्होंने गीता का ज्ञान सूर्य भगवान (विवासवन) को दिया था। उसके बाद उन्होंने अपने शिष्यों को दिया। और यह आगे चलता गया। भगवान कहते हैं कि जब -जब धर्म का नाश होता है वे अवतार लेते हैं। पापियों को दण्डित करते हैं। लेकिन जो उन्हें सम्पर्पित हो जाता है उसकी रक्षा करते हैं। यह युद्ध उनके द्वारा ही रचा गया है। ताकि पापियों को दण्डित किया जा सके। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 04 धन्यवाद
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पुरुषोत्तमयोग वेदों के सारे ज्ञान का यही निचोड़ है कि मनुष्य को मोह -माया का त्याग कर खुद को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। यही सबसे बड़ा योग है। मोह -माया के कारण मनुष्य ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाता है। क्युँकि उसका मन, धन व अन्य भौतिक चीजों से प्रेम करने लगता है। इससे वह ईश्वर...
Published 02/14/23
Published 02/14/23
युद्ध के मैदान में अर्जुन देखता है कि सामने कौरवों की सेना खड़ी है। उस सेना में उसके सगे – सम्बन्धी, मित्र, रिश्तेदार, गुरु आदि हैं। जिनसे उसे युद्ध करना था। मैं इनकी हत्या कैसे कर सकता हूँ – यह सोचकर अर्जुन शोक और ग्लानि से भर उठता है। वह अपना धनुष नीचे रख देता है। और अपने सारथी, भगवान श्री कृष्ण...
Published 02/14/23