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पुरुषोत्तमयोग वेदों के सारे ज्ञान का यही निचोड़ है कि मनुष्य को मोह -माया का त्याग कर खुद को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। यही सबसे बड़ा योग है। मोह -माया के कारण मनुष्य ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाता है। क्युँकि उसका मन, धन व अन्य भौतिक चीजों से प्रेम करने लगता है। इससे वह ईश्वर प्राप्ति के मार्ग से दूर हो जाता है। उत्तम पुरुष वही है जो मोह का त्याग करके खुद को ईश्वर की भक्ति में समर्पित कर दे। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय -15 धन्यवाद
Published 02/14/23
Published 02/14/23
युद्ध के मैदान में अर्जुन देखता है कि सामने कौरवों की सेना खड़ी है। उस सेना में उसके सगे – सम्बन्धी, मित्र, रिश्तेदार, गुरु आदि हैं। जिनसे उसे युद्ध करना था। मैं इनकी हत्या कैसे कर सकता हूँ – यह सोचकर अर्जुन शोक और ग्लानि से भर उठता है। वह अपना धनुष नीचे रख देता है। और अपने सारथी, भगवान श्री कृष्ण से पूछता है – मैं अपने लोगों से कैसे युद्ध कर सकता हूँ। यह कहकर वह असहाय मुद्रा में रथ की गद्दी पर बैठ जाता है। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय – 01 धन्यवाद
Published 02/14/23
सांख्ययोग श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि क्यों व्यर्थ चिंता करते हो। आत्मा तो अजर -अमर है। वह कभी नहीं मरती। सिर्फ यह शरीर मरता है। यह संसार और इसके लोग तुम्हारे बनाये हुए नहीं है। इनके मोह में क्यों बँध रहे हो ! इनके खो जाने का क्यों शोक कर रहे हो। ये सब तो पहले ही मर चुके हैं। और कई बार पैदा भी हो चुके हैं। तुम्हे सिर्फ धर्म की रक्षा के लिए यह युद्ध करना है। यही एक क्षत्रिय का कर्म है। यह सुनकर अर्जुन श्री कृष्ण से कहता है कि अभी भी उसके मन में बहुत से संशय हैं। और उसे सब कुछ विस्तार से...
Published 02/14/23
कर्मयोग श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन हर किसी को इस संसार में अपना कर्म करना चाहिए। लेकिन फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। किसी भी चीज में आसक्त हुए बिना कर्म करना चाहिए। और वह कर्म, धर्म के अनुसार किया जाना चाहिए। सारे कर्मों को ईश्वर को समर्पित किया जाना चाहिए। यदि तुम युद्ध नहीं भी करते हो तो वह भी एक कर्म ही होगा। लेकिन इससे धरती पर बुरे लोगों की संख्या बढ़ जाएगी। जिसकी वजह से पाप फ़ैल जायेगा। इसलिए तुम मोह त्याग कर युद्ध करो। यही तुम्हारा कर्म है। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने....
Published 02/14/23
ज्ञानकर्मसंन्यासयोग इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने Geeta का पौराणिक इतिहास बताया है। सबसे पहले उन्होंने गीता का ज्ञान सूर्य भगवान (विवासवन) को दिया था। उसके बाद उन्होंने अपने शिष्यों को दिया। और यह आगे चलता गया। भगवान कहते हैं कि जब -जब धर्म का नाश होता है वे अवतार लेते हैं। पापियों को दण्डित करते हैं। लेकिन जो उन्हें सम्पर्पित हो जाता है उसकी रक्षा करते हैं। यह युद्ध उनके द्वारा ही रचा गया है। ताकि पापियों को दण्डित किया जा सके। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय -...
Published 02/14/23
कर्मसंन्यासयोग श्री कृष्ण कहते हैं कि सन्यास का मतलब है सांसारिक वस्तुओं से विरक्त होकर ईश्वर की उपासना करना। लेकिन सन्यास लेने के लिए हर किसी को वन – गमन की जरुरत नहीं है। अपना कर्म करते हुए यदि भौतिक सुखों से मोह – भंग कर लिया जाये तो भी मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 05 धन्यवाद
Published 02/14/23
आत्मसंयमयोग या ध्यान योग ध्यान करने से मनुष्य अपनी इन्द्रियों पर काबू पा सकता है। बाहर की चीजों से ध्यान हटाकर सिर्फ परमात्मा का ध्यान करना चाहिए। निरंतर अभ्यास करते रहने से, ध्यान करने वाला योगी बन जाता है। उसे सच्चे सुख प्राप्त होने लगते हैं। उसे किसी भी चीज की चिंता और डर नहीं रहता। वह ईश्वर को समर्पित हो जाता है। ध्यान की आखिरी अवस्था समाधि होती है। इस अवस्था में पहुँचकर योगी को ईश्वर के दर्शन होते हैं। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 06 धन्यवाद
Published 02/14/23
ज्ञानविज्ञानयोग श्री कृष्ण कहते हैं कि ब्रह्माण्ड की हर चीज उनकी ही बनायी हुई है। हर चीज में वे विद्धमान हैं। सूर्य, धरती, ग्रह , नक्षत्र, तारामंडल, ज्ञान , विज्ञान, इन्द्रियां, सुख -दुःख, पाप -पुण्य आदि सब उनके बनाये हुए हैं। जो मनुष्य इस बात को ज्ञान के द्वारा समझ जाते हैं वे ईश्वर को समर्पित हो जाते हैं। जबकि जो संदेह करते हैं वे संसार की भौतिक वस्तुओं को समर्पित हो जाते हैं। और यही उनके दुखों का कारण बना रहता है। उन्हें कभी बैकुंठ (मोक्ष) प्राप्त नहीं होता और बार -बार मृत्यु लोक में जन्म...
Published 02/14/23
अक्षरब्रह्मयोग – Geeta Summary in Hindi इस अध्याय में श्री कृष्ण, अर्जुन को ब्रह्म और आत्मा आदि के बारे में बताते हैं। कृष्ण कहते हैं कि अहम ब्रह्मास्मि। अर्थात मैं ही ब्रह्मा है। और चूँकि मनुष्य की आत्मा भी ईश्वर का ही भाग है इसलिए मनुष्य भी ब्रह्मा ही है। मनुष्य इन बातों को नहीं जान पाता क्युँकि उसकी बुद्धि पर मोहमाया का पर्दा पड़ा रहता है। साथ ही कृष्ण बताते हैं कि बाकी सारे देवी -देवता भी कृष्ण द्वारा ही बनाये गए हैं। उनकी पूजा करना भी परम-ब्रह्म यानि श्री कृष्ण की पूजा करना ही है। मृत्यु...
Published 02/14/23
राजविद्याराजगुह्ययोग इस अध्याय में श्री कृष्ण बताते हैं कि सबसे बड़ा राज यही है कि – कृष्ण ही ईश्वर हैं। उन्होंने ही सृष्टि का निर्माण किया है। वे ही कण -कण में विद्ध्यमान हैं। उन्हें समझ पाना मनुष्य के वश में नहीं है। लेकिन उनकी भक्ति से मनुष्य उन्हें पा सकता है। परन्तु यह भक्ति बिना संदेह और संशय के होनी चाहिए। और इसमें भगवान श्री कृष्ण के प्रति सिर्फ प्रेम ही प्रेम हो। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 09 धन्यवाद
Published 02/14/23
विभूतियोग इस संसार में जो भी अच्छे -बुरे गुण हैं जैसे – ज्ञान, सुंदरता , शक्ति, डर, साहस, हिंसा, आदि उन सबका निर्माण श्री कृष्ण ने ही किया है। जो लोग कृष्ण पर विश्वास रखते हैं वे अच्छे गुणों को प्राप्त करते हैं। और जो ऐसा नहीं करते हैं वे बुरे गुणों को प्राप्त करते हैं। दोनों को ही ईश्वर उनके कर्मों के अनुसार उचित फल अथवा दंड देते हैं। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 10 धन्यवाद
Published 02/14/23
विश्वरूपदर्शनयोग – Geeta Summary in Hindi इस अध्याय में श्री कृष्ण अर्जुन को अपने विराट रूप के दर्शन करवाते हैं। अर्जुन देखता है कि उनका स्वरुप तीनों लोकों में फैला हुआ है। समस्त ब्रह्माण्ड में उनकी ही छवि है। उनके चार हाथ हैं। और असंख्य सिर हैं। कुछ सिर बेहद डरावने हैं और कुछ बेहद सौम्य। कुछ मुखों से आग, जल आदि निकल रहे हैं। उनके एक तरफ से जीव -जंतु जन्म लेकर पृथ्वी की तरफ आ रहे हैं। और दूसरी तरफ वे मौत के गाल में समा रहे हैं। जन्म और मृत्यु सब श्री कृष्ण के द्वारा ही हैं। यह सब देखकर अर्जुन...
Published 02/14/23
भक्तियोग श्री कृष्ण कहते हैं कि सबसे बड़ा योग भक्ति योग ही है। यदि कोई बड़े -बड़े वेद -पुराण नहीं पढ़ सकता, यज्ञ -हवन- तप आदि नहीं कर सकता तो उसे भक्ति योग का सहारा लेना चाहिए। मनुष्य को ईश्वर के प्रेम में लीन होकर उसकी भक्ति करनी चाहिए। उसके भजन गाने चाहिये। उसका मनन -चिंतन -और गुणगान करना चाहिये। स्वयं को पूरी तरह से श्री कृष्ण के चरणों में समप्रित कर देना चाहिए। ऐसे भक्त श्री कृष्ण को परम -प्रिय होते हैं। और वे खुद उनके भक्त हो जाते हैं। मीरा और सूरदास सच्चे भक्तों का उदाहरण हैं। ऐसे भक्तों को...
Published 02/14/23
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग जो व्यक्ति शरीर, आत्मा, परमात्मा और ज्ञान के रहस्यों को समझ जाता है वह इस संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आत्मा में ही परमात्मा का वास होता है। क्युँकि वह उसकी का भाग है। लेकिन अज्ञानवश मनुष्य उसे समझ नहीं पाता। इसलिए पहले ज्ञान हासिल करना चाहिए। ज्ञान का मकसद उस परमात्मा को समझना है। लेकिन इसके लिए मनुष्य को सदाचारी बनना चाहिए। अन्यथा उसमें अहंकार हो जायेगा। फिर वह इस रहस्य को समझा नहीं पायेगा। और परमात्मा को अपने भीतर खोज भी नहीं पायेगा। कृपया गीता के अध्ययन...
Published 02/14/23
गुणत्रयविभागयोग इस अध्याय में श्री कृष्ण ने तीन गुणों के बारे में बताया है। ये तीन गुण हैं – सात्विक, तामसिक और राजस्विक। सात्विक लोग शाकाहारी भोजन करते हैं, सादे वस्त्र धारण करते हैं , बातों से मृदुल होते हैं व् ईश्वर की भक्ति करते हैं। मृत्यु के बाद ये मोक्ष प्राप्त करते हैं। तामसिक प्रवृति वाले लोग मांसाहारी भोजन करते हैं, गंदे वस्त्र पहनते हैं , हिंसक होते हैं व् कभी भी ईश्वर की स्तुति नहीं करते। मृत्यु के बाद ये नरक भोगते हैं। राजस्विक लोग भोग -विलास में रूचि लेते हैं , इनमें दोनों के...
Published 02/14/23
दैवासुरसम्पद्विभागयोग मनुष्यों में दो तरह की प्रवृति पायी जाती है : देव व् दानव। देव वृत्ति वालों में बहुत से अच्छे गुण होते हैं। जैसे सेवा भाव, संयम, सच्चाई, ईमानदारी, स्वच्छत्ता, शांति, आदि। ये मोक्ष के पात्र होते हैं। इसके विपरीत दानव वृत्ति वाले लोगों में बुरे गुण होते हैं जैसे – घमंड, ईर्ष्या, क्रोध , काम -वासना, हिंसा आदि। ये नरक के पात्र होते हैं। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 16 धन्यवाद
Published 02/14/23
श्रद्धात्रयविभागयोग अर्जुन ने पूछा – जो लोग वेद -पुराणों से अलग, अपनी मर्जी से भक्ति करना चाहते हैं उन्हें क्या करना चाहिए। श्री कृष्ण कहते हैं – उन्हें ॐ तत सत का पालन करना चाहिए। ॐ का मतलब है ईश्वर , तत का मतलब है मोहमाया से दूर रहना, सत का मतलब है सच्चाई। अर्थात मनुष्य को मोह माया से दूर होकर, सच्चे मार्ग पर चलते हुए ईश्वर की भक्ति करते रहना चाहिए। ऐसे मनुष्य को ईश्वर अपनी शरण में ले लेते हैं और मोक्ष प्रदान करते हैं। कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 17 धन्यवाद
Published 02/14/23
मोक्षसंन्यासयोग इस अध्याय में भगवान कृष्ण अर्जुन को मोक्ष प्राप्ति के मार्ग के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के लिए सब चीजों का मोह त्याग कर मनुष्य को पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित हो जाना चाहिए। अपने जीवन के हर कर्म को कृष्ण को ही समर्पित कर देना चाहिए। उनसे अथाह प्रेम करना चाहिए। उन पर पूरी श्रद्धा रखनी चाहिए। उन्हें भजते रहना चाहिए। और सन्यासी की भांति किसी भी चीज से मोह नहीं करना चाहिए। इस प्रकार जीवन बिताने के बाद मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। अंत में कृष्ण...
Published 02/14/23