दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 8 राग भटियार
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Description
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन आरोही नी अल्प ले, मध्यम दोऊ सम्हार, रे कोमल, संवाद म स, क़हत राग भटियार। अर्थात इस राग में कोमल ऋषभ और दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। आरोह में निषाद स्वर का अल्प प्रयोग किया जाता है। यह मारवा थाट का सम्पूर्ण जाति का राग है। अधिकतर विद्वान इस राग को बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते हैं। बिलावल थाट का राग मानने का कारण है कि इस राग में शुद्ध मध्यम स्वर प्रधान होता है, जबकि राग मारवा में शुद्ध मध्यम का प्रयोग होता ही नहीं। स्वरूप की दृष्टि से भी यह मारवा के निकट भी नहीं है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यह रात्रि के अन्तिम प्रहर विशेष रूप से प्रातःकालीन सन्धिप्रकाश काल में गाया-बजाया जाने वाला राग है। प्रातःकालीन सन्धिप्रकाश रागों में कोमल ऋषभ और शुद्ध गान्धार के साथ-साथ शुद्ध मध्यम स्वर का प्रयोग भी किया जाता है। तीव्र मध्यम स्वर का भी प्रयोग होता है, किन्तु अल्प। अवरोह के स्वर वक्रगति से लिये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह पाँचवीं शताब्दी के राजा भर्तृहरि की राग रचना है। उत्तरांग प्रधान यह राग भंखार के काफी निकट होता है। राग भंखार में पंचम स्वर पर ठहराव दिया जाता है, जबकि राग भटियार में शुद्ध मध्यम पर। राग भटियार वक्र जाति का राग है। इसमें षडज स्वर से सीधे धैवत पर जाते हैं, जो अत्यन्त मनोहारी होता है। यह राग गम्भीर, दार्शनिक भाव और जीवन के उल्लास की अभिव्यक्ति देने में पूर्ण समर्थ है। राग भटियार का एक शास्त्रोक्त और प्रयोगधर्मी स्वरूप का अनुभव कराने के लिए अब हम आपको विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित रविशंकर से सितार पर दो रचनाएँ सुनवा रहे हैं। पहली रचना मध्यलय तीनताल में और दूसरी द्रुत एकताल में निबद्ध है।
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Published 12/09/21
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Published 12/02/21
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