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भेंटकर्ता : शुभ्रा ठाकुर  नाम- कु.श्रीया झा माता- श्रीमती अर्चना झा पिता-श्री उमेश कुमार झा शिक्षा- B.A.(HONS) -ENG वर्तमान मैं क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, बैंगलोर से MA English with communication studies की पढ़ाई जारी है।  शास्त्रीय संगीत  -विद (6 वर्षीय) शौक- गायन,एवम वादन (गिटार,हारमोनियम,ढोलक), अभिनय, चित्रकारी,पठन एवम योग  मेरी प्रथम गुरु, मेरी माँ से मैने संगीत की शिक्षा प्राप्त की तथा, इंदिरा कला एवम संगीत  विश्विद्यालय,खैरागढ़  से, श्री रवीश कलगांवकर जी के सानिध्य में संगीत का...
Published 12/09/21
निमिषा सिंघल का जन्म बुलंदशहर में हुआ  खुर्जा व मेरठ में शिक्षा दीक्षा हुई ,  शिक्षा : एमएससी, बी.एड,एम. फिल, सूक्ष्मजैविकी में एम.फिल पूरी करने के बाद शास्त्रीय संगीत में प्रवीण तक का सफ़र तय किया।  आज कल निमिषा जी आगरा में रहती हैं। संगीत के साथ साथ वे समर्थ साहित्यकार और कला(oil painting) के क्षेत्र में भी माहिर हैं। कविताएँ और कहानियां लिखती रही हैं। उनका एक एकल काव्य संँग्रह भी प्रकाशित है   कविता कोश में रचनाएंँ प्रकाशित हो चुकी हैं। ताज महोत्सव 2016 - 2018 में भजन गजल प्रस्तुति...
Published 12/02/21
Published 12/02/21
प्राप्ति पुराणिक वाराणसी की एक उभरती हुई 20 वर्षीय शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत की गायिका हैं। प्राप्ति , वाराणसी के पंडित देवाशीष डे की शिष्या हैं और शिल्पायन-द म्यूजिक हब में भी सीखती हैं। वह प्रयाग संगीत समिति से छठा वर्ष कर रही है और शैक्षणिक क्षेत्र में वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीए अर्थशास्त्र (ऑनर्स) कर रही है। पुरस्कार: 1) सेंटर फॉर कल्चरल रिसोर्सेज एंड ट्रेनिंग (सीसीआरटी), भारत सरकार द्वारा जूनियर नेशनल स्कॉलरशिप के प्राप्तकर्ता (वर्ष 2014-15 से)। 2) वर्ष 2017 में...
Published 11/25/21
राग भैरव और बातचीत श्रुति प्रभला से   (1) Bal Rang Award - 2005 (2) Voice Of seepat winner - 2016 (3) Got selected in Gurukul Anubhav Scholarship scheme held by spic macay.  * One of the scholar amongst 10 all over India. (4) went to ITC SANGEET RESEARCH ACADEMY Kolkata (5) Disciple under faculty of SRA - Ustad Waseem Ahmad Khan, 17th generation of Agra Gharana (6) Winner of National Level Singing competition held by Andhra Association Raipur (7) Second runnerup in voice of world...
Published 11/18/21
रेडियो प्ले बैकइंडिया के भारतीय राग पॉडकास्ट की दूसरी शृंखला हम शुरू कर रहे हैं। इसमें कुछ नवोदित और कुछ प्रतिष्ठित  शास्त्रीय संगीत कलाकारों से रेडियो प्लेबैक इंडिया के anchors बातचीत करेंगे। किसी राग पर बातचीत होगी और कलाकार का गायन भी शामिल किया जाएगा।  आज इस पहली कड़ी में दिल्ली की नवोदित कलाकार आख्या सिंग से RPI की प्रज्ञा मिश्रा बातचीत कर रही हैं।    कलाकार का नाम : आख्या सिंह ( Aakhya Singh ) कला : शास्त्रीय गायन गुरू : विदुषी ऊषा भट्ट जी ( जयपुर- ग्वालियर घराना ) शिक्षा :  (1)...
Published 11/11/21
जन्माष्टमी के अवसर पर रेडियो प्लैबैक इंडिया की विशेष प्रस्तुति लोकगायिका कुसुम वर्मा की प्रस्तुति, लोकगीतों में कृष्ण दर्शन 
Published 08/28/21
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्तमान में प्रचलित थाट पद्धति पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे द्वारा प्रवर्तित है। भातखण्डे जी ने गम्भीर अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि तत्कालीन प्रचलित राग-वर्गीकरण की जितनी भी पद्धतियाँ उत्तर भारतीय संगीत में प्रचार में आईं और उनके काल में अस्तित्व में थीं, उनके रागों के वर्गीकरण के नियम आज के रागों पर लागू नहीं हो सकता। गत कुछ शताब्दियों में सभी रागों में परिवर्तन एवं परिवर्द्धन हुए हैं, अतः...
Published 07/22/21
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन इन दिनों हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि संगीत के रागों के वर्गीकरण के लिए थाट प्रणाली को अपनाया गया। थाट और राग के विषय में कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि पहले थाट और फिर उससे राग की उत्पत्ति हुई होगी। दरअसल ऐसा नहीं है। रागों की संरचना अत्यन्त प्राचीन है। रागों में प्रयुक्त स्वरों के अनुकूल मिलते स्वर जिस थाट के स्वरों में मौजूद होते हैं, राग को उस थाट विशेष से उत्पन्न माना गया है।...
Published 07/15/21
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन भारतीय संगीत के रागों को उनमें लगने वाले स्वरों के अनुसार वर्गीकृत करने की प्रणाली को थाट कहा जाता है। पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने कुल दस थाट के अन्तर्गत सभी रागों का वर्गीकरण किया था। उन्होने थाट के कुछ लक्षण बताए हैं। किसी भी थाट में कम से कम सात स्वरों का प्रयोग ज़रूरी है। थाट में ये सात स्वर स्वाभाविक क्रम में रहने चाहिये। अर्थात सा के बाद रे, रे के बाद ग आदि। थाट को गाया-बजाया नहीं जा सकता। इसके स्वरों के अनुकूल किसी राग की रचना की...
Published 07/02/21
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘राग ’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है।...
Published 06/24/21
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन रे ध कोमल गाइए, दोनों मध्यम मान, ग-नि वादी-संवादि सों, राग पूर्वी जान। पूर्वी थाट का आश्रय राग पूर्वी है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं। राग पूर्वी के आरोह के स्वर- सा रे(कोमल), ग, म॑(तीव्र) प, ध(कोमल), नि सां और अवरोह के स्वर- सां नि ध(कोमल) प, म॑(तीव्र) ग, रे(कोमल) सा होते हैं। इस राग में कोई भी स्वर वर्जित नहीं होता। ऋषभ और धैवत कोमल तथा मध्यम के दोनों प्रकार प्रयोग किये...
Published 06/17/21
‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की नवीं कड़ी में आज हम राग ललित के स्वरूप की चर्चा करेंगे। राग ललित पूर्वी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इस राग में कोमल ऋषभ, कोमल धैवत तथा दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। आरोह और अवरोह दोनों में पंचम स्वर पूर्णतः वर्जित होता है। इसीलिए इस राग की जाति षाड़व-षाड़व होती है। अर्थात, राग के आरोह और अवरोह में 6-6 स्वरों का प्रयोग होता है। भातखण्डे जी ने राग ललित में शुद्ध धैवत के प्रयोग को माना है। उनके अनुसार यह राग मारवा थाट के अन्तर्गत माना जाता है। राग ललित...
Published 06/11/21
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन आरोही नी अल्प ले, मध्यम दोऊ सम्हार, रे कोमल, संवाद म स, क़हत राग भटियार। अर्थात इस राग में कोमल ऋषभ और दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। आरोह में निषाद स्वर का अल्प प्रयोग किया जाता है। यह मारवा थाट का सम्पूर्ण जाति का राग है। अधिकतर विद्वान इस राग को बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते हैं। बिलावल थाट का राग मानने का कारण है कि इस राग में शुद्ध मध्यम स्वर प्रधान होता है, जबकि राग मारवा में शुद्ध मध्यम का प्रयोग होता ही नहीं। स्वरूप की...
Published 06/04/21
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन दो मध्यम अरु शुद्ध स्वर, आरोहण रे हानि, स-प वादी-संवादी तें, नन्द राग पहचानि। आज के अंक में हमने आपके लिए दोनों मध्यम स्वरों से युक्त, अत्यन्त मोहक राग ‘नन्द’ चुना है। इस राग को नन्द कल्याण, आनन्दी या आनन्दी कल्याण के नाम से भी पहचाना जाता है। यह कल्याण थाट का राग माना जाता है। यह षाडव-सम्पूर्ण जाति का राग है, जिसके आरोह में ऋषभ स्वर का प्रयोग नहीं होता। इसके आरोह में शुद्ध मध्यम का तथा अवरोह में दोनों मध्यम का प्रयोग किया जाता है। इसका...
Published 05/27/21
आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र  प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन  इस श्रृंखला में अभी तक आपने जो राग सुने हैं, वह सभी कल्याण थाट के राग माने जाते हैं और इन्हें रात्रि के पहले प्रहर में ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। दोनों मध्यम स्वर स्वर से युक्त आज का राग, ‘गौड़ सारंग’ भी कल्याण थाट का माना जाता है, किन्तु इस राग के गायन-वादन का समय रात्रि का प्रथम प्रहर नहीं बल्कि दिन का दूसरा प्रहर होता है। राग गौड़ सारंग में दोनों मध्यम के अलावा सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। इस राग के आरोह और अवरोह में सभी...
Published 05/20/21
कल्याणहिं के थाट में, दोनों मध्यम जान, ध-ग वादी-संवादि सों, राग हमीर बखान। दिन के पाँचवें प्रहर या रात्रि के पहले प्रहर में गाने-बजाने वाला, दोनों मध्यम स्वर से युक्त एक और राग है, हमीर। मूलतः राग हमीर दक्षिण भारतीय संगीत पद्यति से इसी नाम से उत्तर भारतीय संगीत में प्रचलित राग के समतुल्य है। राग हमीर को कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इस राग में दोनों मध्यम का प्रयोग होने और तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग होने के कारण कुछ प्राचीन ग्रन्थकार और कुछ आधुनिक संगीतज्ञ इसे बिलावल थाट के अन्तर्गत...
Published 05/13/21
चढ़ते धैवत त्याग कर, दोनों मध्यम मान, स-म वादी-संवादी सों, क़हत श्यामकल्याण। दोनों मध्यम स्वरों से युक्त राग श्यामकल्याण हमारी श्रृंखला, ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की चौथी कड़ी का राग है। तीव्र मध्यम स्वर की उपस्थिति के कारण इस राग को कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। आरोह में गान्धार और धैवत स्वर वर्जित होता है तथा अवरोह में सभी सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं। दोनों मध्यम के अलावा शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में पाँच और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाने के कारण राग...
Published 05/06/21
जबहिं थाट कल्याण में, दोनों मध्यम पेखि, प रे वादी-संवादि सों, छायानट को देखि। दोनों मध्यम स्वर वाले रागों के क्रम में तीसरा राग ‘छायानट’ है। इससे पूर्व की कड़ियों में आपने राग कामोद और केदार का रसास्वादन किया था। यह दोनों राग, कल्याण थाट से सम्बद्ध हैं और इनको रात्रि के पहले प्रहर में ही गाने-बजाने की परम्परा है। आज का राग छायानट भी इसी वर्ग का राग है। राग छायानट, कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इसमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग होता है,...
Published 04/29/21
दो मध्यम केदार में, स म संवाद सम्हार, आरोहण रे ग बरज कर, उतरत अल्प गान्धार।  भक्तिरस की अभिव्यक्ति के लिए केदार एक समर्थ राग है। कर्नाटक संगीत पद्यति में राग हमीर कल्याणी, राग केदार के समतुल्य है। औड़व-षाड़व जाति, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में छह स्वरों का प्रयोग होने वाला यह राग कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। प्राचीन ग्रन्थकार राग केदार को बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते थे, आजकल अधिकतर गुणिजन इसे कल्याण थाट के अन्तर्गत मानते हैं। इस राग में दोनों मध्यम का प्रयोग होता है। शुद्ध मध्यम...
Published 04/22/21
कल्याणहिं के थाट में दोनों मध्यम लाय, प-रि वादी-संवादि कर, तब कामोद सुहाय। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक  के मंच पर श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की आज से शुरुआत हो रही है।  इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की चर्चा करेंगे, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। संगीत के सात स्वरों में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे संगीत में मध्यम स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22 श्रुतियों में दसवाँ...
Published 04/15/21
आज हम आपसे संगीत की एक ऐसी शैली पर चर्चा करेंगे जो मूलतः ऋतु प्रधान लोक संगीत की शैली है, किन्तु अपनी सांगीतिक गुणबत्ता के कारण इस शैली को उपशास्त्रीय मंचों पर भी अपार लोकप्रियता प्राप्त है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र मास से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में चैती गीतों का गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव की चौपालों से लेकर मेलों में, मन्दिरों में चैती के स्वर गूँजने लगते हैं।...
Published 04/08/21
भारतीय पर्वों में होली एक ऐसा पर्व है, जिसमें संगीत-नृत्य की प्रमुख भूमिका होती है। जनसामान्य अपने उल्लास की अभिव्यक्ति के लिए देशज संगीत से लेकर शास्त्रीय संगीत का सहारा लेता है। इस अवसर पर विविध संगीत शैलियों के माध्यम से होली की उमंग को प्रस्तुत करने की परम्परा है। इन सभी भारतीय संगीत शैलियों में होली की रचनाएँ प्रमुख रूप से उपलब्ध हैं। मित्रों, पिछली तीन कड़ियों में हमने संगीत की विविध शैलियों में राग काफी के प्रयोग पर चर्चा की है। राग काफी फाल्गुनी परिवेश का चित्रण करने में समर्थ होता है।...
Published 04/01/21
फाल्गुन मास में शीत ऋतु का क्रमशः अवसान और ग्रीष्म ऋतु की आगमन होता है। यह परिवेश उल्लास और श्रृंगार भाव से परिपूर्ण होता है। प्रकृति में भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है। रस-रंग से परिपूर्ण फाल्गुनी परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है।  इस राग में ठुमरी, टप्पा, खयाल, तराना और भजन सभी विधायें उपलब्ध हैं। आज के अंक में हम आपसे राग काफी की कुछ होरी की चर्चा करेंगे, साथ ही गायिका...
Published 03/25/21