दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : बिलावल थाट
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आलेख : कृष्ण मोहन मिश्र प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन भारतीय संगीत के रागों को उनमें लगने वाले स्वरों के अनुसार वर्गीकृत करने की प्रणाली को थाट कहा जाता है। पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने कुल दस थाट के अन्तर्गत सभी रागों का वर्गीकरण किया था। उन्होने थाट के कुछ लक्षण बताए हैं। किसी भी थाट में कम से कम सात स्वरों का प्रयोग ज़रूरी है। थाट में ये सात स्वर स्वाभाविक क्रम में रहने चाहिये। अर्थात सा के बाद रे, रे के बाद ग आदि। थाट को गाया-बजाया नहीं जा सकता। इसके स्वरों के अनुकूल किसी राग की रचना की जा सकती है, जिसे गाया बजाया जा सकता है। एक थाट से कई रागों की रचना हो सकती है। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने आपको ‘कल्याण’ थाट का परिचय दिया था। आज का दूसरा थाट है- ‘बिलावल’। इस थाट में प्रयोग होने वाले स्वर हैं- सा, रे, ग, म, प, ध, नि अर्थात सभी शुद्ध स्वर का प्रयोग होता है। पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे कृत ‘क्रमिक पुस्तक मालिका’ (भाग-1) के अनुसार ‘बिलावल’ थाट का आश्रय राग ‘बिलावल’ ही है। इस थाट के अन्तर्गत आने वाले अन्य प्रमुख राग हैं- अल्हैया बिलावल, बिहाग, देशकार, हेमकल्याण, दुर्गा, शंकरा, पहाड़ी, भिन्न षडज, हंसध्वनि, माँड़ आदि। राग ‘बिलावल’ में सभी सात शुद्ध स्वरों का प्रयोग होता है। वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गांधार होता है। इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल का प्रथम प्रहर होता है।
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Published 12/02/21
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