हनुमान चालीसा की चौथी चौपाई का हिंदी अर्थ | हनुमान कथा हनुमान जी को क्यों पसंद हैं सिंदूर
Description
हनुमान चालीसा की चौथी चौपाई का हिंदी अर्थ |
हनुमान कथा हनुमान जी को क्यों पसंद हैं सिंदूर
कंचन बरन बिराज सुवेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥ ॥4॥
तुलसीदासजी जैसे संत जब भगवान का ध्यान करते है, समाधी लगाते है | तब वे समाधी मे तल्लीन हो जाते है तथा उनको भगवान का शरीर, आभूषण, कुण्डल, केस इत्यादि सब सुन्दर लगते है। हमारे जैसे सामान्य इन्सान भी जब प्रेम करते है, उस वक़्त हमें भी उसकी आँख, नाक, कान, सुन्दर लगते हैं। यहाँ तुलसीदासजी वर्णन करते है कि हनुमान जी का शरीर सोने की तरह चमक रहा है |कानों मे कुण्डल शेभायमान है, तथा बल घुंघराले हैं। जिसका जीवन सरल और सुन्दर होता है | हो कुछ भी धारण करे वह सुन्दर ही लगता है।
दान की महिमा तभी होती है, जब वह नि:स्वार्थ भाव से किया जाता है अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। जब इस भाव के पीछे कुछ पाने का स्वार्थ छिपा हो तो क्या वह दान रह जाता है ? यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए,...
Published 07/22/21
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूर्ति रुप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ।।
आप संकट दूर करने वाले तथा, आप आनन्द मंगल के स्वरुप हैं । हे देवराज आप श्रीराम लक्ष्मण और सीताजी सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए । तुलसीदासजी हनुमानजी से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे हनुमानजी ! आप राम लक्ष्मण और सीता...
Published 07/13/21
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥ 40 ॥
हे नाथ हनुमानजी ! तुलसीदास सदा ही श्रीराम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए । हनुमान जी तुलसीदास जी के गुरु हैं। तुलसीदास जी ने हनुमानजी को अपना गुरु माना है। उनके मार्गदर्शन के अनुसार ही उन्हे भगवान श्रीराम के दश्र्रन हुए ।...
Published 06/19/21