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दान की महिमा तभी होती है, जब वह नि:स्वार्थ भाव से किया जाता है अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। जब इस भाव के पीछे कुछ पाने का स्वार्थ छिपा हो तो क्या वह दान रह जाता है ? यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए, ताकि यह हमारा सत्कर्म हो, न कि हमारा अहंकार । #DharmikStory #kathaDarshan
Published 07/22/21
 पवनतनय  संकट  हरन, मंगल मूर्ति रुप । राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ।। आप संकट दूर करने वाले तथा, आप आनन्द मंगल के स्वरुप हैं ।  हे देवराज आप श्रीराम लक्ष्मण और सीताजी सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए । तुलसीदासजी हनुमानजी से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे हनुमानजी ! आप राम लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए ।  इस बात के पीछे गहरा अर्थ छुपा हुआ है ।  यहाँ पर भक्त श्रेष्ठ के रुप में हनुमानजी है तथा राम, सीता और लक्ष्मण, ज्ञान भक्ति और कर्म के रुप में हैं ।   #HanumanChalisa...
Published 07/13/21
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।  कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥ 40 ॥  हे नाथ हनुमानजी ! तुलसीदास सदा ही श्रीराम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए । हनुमान जी तुलसीदास जी के गुरु हैं। तुलसीदास जी ने हनुमानजी को अपना गुरु माना है। उनके मार्गदर्शन के अनुसार ही उन्हे भगवान श्रीराम के दश्‍​र्रन हुए ।  इसलिए तुलसीदासजी हनुमानजी से प्रार्थना कर रहे हैं कि, हे हनुमानजी ।  आप मेरे हृदय में निवास कीजिए । गुरु हो तो ज्ञान मिलता है, या सत्संग किया तो मार्गदर्शन मिलता है । #HanumanChalisa...
Published 06/19/21
यह हनुमान चालीसा लिखवाया इसलिए वे साक्षी हैं कि जो इसे पढेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी । भगवान शिव का रुप गुरु का रुप है ।  ज्ञानराणा शिव है, जिनके मस्तिष्क से अविरत ज्ञानगंगा का प्रवाह प्रवाहित होता रहता है । भगवान शंकर इस हनुमान चालीसा के साक्षी हैं ऐसा इस चौपाई में उल्लेख है ।  भगवान शंकर की प्रेरणा से तुलसदासजी ने हनुमान चालीसा की रचना की है । हनुमान चालीसा में हनुमत चरित्र पर पूर्ण रुप से प्रकाश डाला गया है । गुरु का मस्तिष्क ज्ञान से भरा हुआ रहता है ।  जो यह पढै हनुमान चालीसा...
Published 06/12/21
जो शत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥ 38 ॥ जो सौ बार हनुमान चालीसा का पाठ करेगा उसे सब बंधनो से मुक्ति मिलेगी तथा सुख की प्राप्ति  होगी । यहाँ पर तुलसदासजी ने जो शत बार शब्द का प्रयोग किया है, शत बार यानी बार बार हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए यह अभिप्रेरित है । गोस्वामी तुलसीदासजी का अभिप्राय यह है कि हनुमान चालीसा में भक्त श्रेष्ठ हनुमानजी का जो चरित्र चित्रण है उसका स्वाध्याय बार बार करना चाहिए ।  #HanumanChalisa #HanumanKatha #jaiShreeRam
Published 05/29/21
हनुमान कथा : भगवान मिलन  | हनुमान चालीसा के सैंतीसवीं चौपाई का अर्थ  जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥ 37 ॥   हे हनुमानजी आपकी जय हो ऐसा तीन बार उन्होने लिखा है, इसके पीछे गहरा अर्थ छुपा हुआ है । हम जब आपस में एक दूसरे से मिलते हैं तब जय रामजी की कहते हैं ।  इन में से कोई भी बोलो मगर भगवान की जय होनी चाहिए ।  #HanumanChalisa #HanumanKatha
Published 05/11/21
हनुमान चालीसा के छतीसवीं  चौपाई का अर्थ  हनुमान कथा : मंगल का व्रत  संकट कटै मिटै सब पीरा ।  जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ 36 ॥ जो आपका स्मरण करता है, उसके सब संकट कट जाते हैं और सब पीडा मिट जाती हैं
Published 05/04/21
और देवता चित्त न धरई ।  हनुमंत सेई सर्व सुख करई ॥ 35 ॥ शास्त्रीय पूजा का महत्व समझाते हैं । पूजा वैदिक ऋषियों के द्वारा मानव को दी हुई अनुपम भेंट है ।  विश्व का मानव चित्त शुद्धि कर अध्यात्मिक विकास कर सके, हमारे ऋषियों ने सरल, व्यावहारिक, बुद्धिगम्य एवं शास्त्रीय पूजा की आवश्यकता समझायी है । मन को पुष्ट करने के लिए सबेरे से शाम तक चलने वाली आज की पूजा क्या उपयोगी हो सकती है?  #HanumanChalisa #HanumanKatha
Published 04/27/21
Published 04/27/21
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ॥ 34 ॥ हमारा अन्तकाल होता ही नहीं है, प्रयाणकाल होता है ।  हम मरेंगे तो दूसरा जन्म लेंगे । अन्तकाल का अर्थ यह है कि अब दूसरा जन्म लेना नहीं है । जीवन मे मृत्यु है । मृत्यु होनी ही चाहिए। मृत्यु में काव्य खडा करने वाला, मृत्यु का काव्य बताने वाला गुरु है । मृत्यु है इसलिए जीवन है । मृत्यु को भगवान ने ही बनाया है । 
Published 04/13/21
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ 33 ॥ हनुमाजी का भजन करने से भगवान राम प्रसन्न होते हैं तथा सब प्रकार के दु:ख बिसरा कर सुख की प्राप्ति होती है ।यहाँ तुलसीदासजी का आग्रह है कि हमें संतो के भजन गाने चाहिए । भक्तो के भजन गाने चाहिए क्योंकि उसमें जीवन विषय तत्वज्ञान भरा हुआ होता है । जीवन समझाया गया होता है क्या होना है, क्या करना चाहिए तथा क्या बनाना चाहिए यह सब उन भजनों में होता है ।   #HanumanChalisa #HanumanKatha
Published 03/23/21
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥ 32 ॥ राम हनुमान से पूछते हैं,   तुझे क्या चाहिए?   तब हनुमान उत्तर देते हैं,  आपके उपर से प्रेम भक्ति कम न हो, तथा राम के अतिरिक्त अन्य भाव निर्माण न हो, मुझे यही चाहिए।   उन्होने मुक्ति अथवा स्वर्ग नही मांगा ।  राम उनको वैकुण्ठ नहीं ले गये, यहीं छोड गये, परन्तु उनके दिल में राम ही है ।   जहाँ तक राम कथा है वहाँ तक हनुमान अमर है ।  रामकथा जहाँ चलेगी वहाँ मारुतिराय की कथा चलेगी ही । #HanumanChalisa #HanumanKatha
Published 03/01/21
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।  अस बर दीन्ह जानकी माता ॥ 31 ॥ हनुमानजी अपने भक्तो को आठ प्रकार की सिद्धयाँ तथा नऊ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं | ऐसा सीता माता ने उन्हे वरदान दिया । भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को प्रसन्न होकर आलिंगन दिया और सीताजी ने उन्हे अष्ट सिद्ध नव निधि के दाता का वर प्रदान किया।सच्चे साधक की सेवा के लिए सिद्धियाँ अपने आप सदैव तैयार रहती है।  #HanumanChalisa #HanumanKatha
Published 02/27/21
चौपाई:- साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥ 30 ॥ आप साधु और सन्तों तथा सज्जनों की रक्षा करतें हैं तथा दुष्टों का सर्वनाश करतें हैं । तुलसीदासजी कहते हैं कि हनुमानजी साधु पुरुषों का रक्षण करते हैं और दुष्टोका नाश करते हैं । भगवान धरतीपर अवतार लेकर आते है वहीं काम हनुमानजी भी करते हैं प्रभु का वचन है कि धर्म तथा मानवता का हास्  होगा तब उनके पुनरुत्थान के लिए मैं जन्म लूँगा ।  #HanumanChalisa #HanumanKatha Subscribe And Watch More Video :: Katha...
Published 02/26/21
चारों जुग प्रताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ 29 ॥ हनुमानजी का यश चारों युग में फेला हुआ है तथा उनकी कीर्ति से सारा संसार प्रकाशमान हुआ है ।  जो कहने योग्य हो उसे कीर्ति कहते हैं । कीर्ति एक शक्ति है। प्रतिष्ठा कौन देगा ?  एक बात सच है, जिसे भगवान के हृदयमें प्रतिष्ठा मिली उसे विश्व में प्रतिष्ठा मिलती है। मन की विविध आवश्यकताएं हैं।  उनकी पूर्ति भक्ति से होगी, भगवान से होगी।   Subscribe And Watch More Video :: Katha Darshan https://www.youtube.com/c/kathaDarshan
Published 02/25/21
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥ 28 ॥ जिस पर आपकी कृपा हो, ऐसा जीव कोई भी अभिलाषा करे तो उसे तुरन्त फल मिल जाता है | जीव जिस फल के विषय में सोंच भी नहीं सकता वह फल मिल जाता है, अर्थात सारी कामनाएं पूरी हो जाती है।हम जो मनोरथ मन के संकल्प करते हैं भगवान उस अनुसार हमें जीवन में फल देते हैं । हमें भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि, भगवान मेरे मन के मनोरथ दिव्य और भव्य हो, संकल्प तेजस्वी हो । Subscribe & Watch More Video :: Katha...
Published 02/24/21
सब पर राम तपस्वी राजा, तिन के काज सकल तुम साजा ॥ 27 ॥ भगवान रामजी का चरित्र सर्वश्रेष्ठ है, रामचरित्र भावपूर्ण व ऐतिहासिक काव्य है। भारतीय संस्कृति को क्या बनना है यह रामचरित्र पढकर ध्यान में आता है। संसार का नैतिक स्तर ऊँचा करने के लिए प्रभु राम जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम चरित्रवान का अवतार इस संसार में लिया राम जी का चरित्र हजारों वर्षों के बाद, वर्षों तक लाखों-करोडों लोगों को प्रेरणा दे सकता है, उनको नमस्कार ही करना चाहिए। Watch More Video :: Katha...
Published 02/23/21
संकट ते हनुमान छुडावै मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ 26 ॥           हमें भगवान की मूर्ति में चित एकाग्र करने के लिए कहते हैं। ऐसी भगवान की मूर्ति लो हमारे मन में स्थापित हो भगवान की भक्ति दो प्रकार से करनी चाहिए, अन्तर्भक्ति और बहिर्भक्ति।अन्तर्भक्ति  भगवान का  मन और बुद्धि दोनों से ध्यान करना और भगवान के चरणों में मन और बुद्धि को एकाग्र करना | बहिर्भक्ति यानी जिस भगवान पर प्रेम है, उसका काम करना Subscribe & Watch More Video :: Katha Darshan https://www.youtube.com/c/kathaDarshan
Published 02/22/21
नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥ 25 ॥ हनुमानजी का जप करने से रोग, भय विकार इत्यादि का नाश हो जाता है। रोग, भय विकार इन तीनों से जीवन त्रस्त बनता है, इसलिए इन तीनों से मुक्ति चाहिए।रोग मुक्ति यह शारीरिक मुक्ति का लक्षण है, भय और विकार मुक्ति मानसिक मुक्ति के लक्षण हैं। प्रत्येक व्यक्ति परेशान हैं, उसकी परेशानी कौन सी है दुख कुछ आये हुए है और कुछ आनेवाले है, उनकी विवंचना भ्रम यही व्यक्ति का दु:ख है। Watch More Video :: https://www.youtube.com/c/kathaDarshan
Published 02/20/21
भूत पिसाच निकट नहिं आवैं, महाबीर जब नाम सुनावै ॥ 24 ॥ हे पवनपुत्र, आपका महावीर हनुमानजी का नाम सुनकर भूत-पिसाच आदि दुष्ट आत्माएँ पास भी नहीं आ सकती। जो बाहर के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है उसे वीर कहते हैं तथा जो अंतर्बाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है उसे महावीर कहते हैं। इंद्रजीत जैसे बाह्य शत्रुओं को तो हनुमान जी ने जीता ही था परन्तु मन के अन्दर रहे हुए काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि असुरों पर भी उन्होने विजय प्राप्त की थी इसीलिए वे महावीर हैं। #HanumanChalisa #HanumanKatha
Published 02/19/21
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक तें कांपै ॥ 23 ॥ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते हैं। तुलसीदासजी लिखते हैं कि हनूमानजी का जीवन गतिमान है, इसलिए उनमें तेज है तथा उनकी गति को कोई रोक नहीं सकता। तुलसीदासजी का अभिप्राय यह है कि मानव को अपनी गति, अपना आश्रय निचित करना चाहिए। मनुष्य को अपना सामथ्र्य निचित करना चाहिए, अपना मार्ग निश्चित करना चाहिए।
Published 02/18/21
सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ॥ 22 ॥ जो भी आपकी शरण में आते है उन सभी को आनन्द एवं सुख प्राप्त होता है और आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नहीं रहता। तुलसीदासजी यहाँ भगवान की शरण में जाने के लिए कह रहें। शरणागति एक महान साधन है, भगवान की शरण जाओ, भगवान का बन जाओ, उसके बिना जीवन में आनंद नहीं है, भगवान आधार है। #HanumanChalisa #HanumanKatha
Published 02/17/21
राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ 21 ॥ श्री रामचंद्रजी के द्वार के आप रखवाले हैं, जिसमें आपकी आज्ञा के बिना किसी को प्रवेश नहीं मिल सकता। श्रीराम कृपा पाने के लिए आपको प्रसन्न करना आवश्यक है। तुलसीदासजी कहते है कि यदि हमें भगवान तक पहुँचना है तो गुरु, संत और शास्त्रकारों की सेवा करनी चाहिए। संतो से ज्ञान मिलता है, यानी कि सत्संग किया तो मार्गदर्शन मिलता है। #HanumanChalisa #HanumanKatha
Published 02/16/21
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते  ॥ 20 ॥ संसार में जितने भी कठीन से कठीन काम हैं, वे सभी आपकी पासे सहज और सुलभ हो जाते हैं । प्रभु के उपर अटूट विश्वास, पुरुषार्थ और पराक्रम साथ में मिल जाएंगे तो कोई भी काम असंभव नही रह जाएगा, रघुराजा ने अपने बाहुबल से संपत्ति प्राप्त करके कौत्स को दी। एकलव्य ने बन में जाकर तप करते हुए स्वप्रयत्न से विद्या प्राप्त की । उसी प्रकार हनुमानजी ने भी प्रभु पर अटूट विश्वास रखते हुए अपने पुरुषार्थ से कठिन से कठिन काम को भी सहजता से कर...
Published 02/15/21
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ॥ 19 ॥ हनुमानजी ने भगवान श्री रामचन्द्रजी की दी हुई अँगुठी को मुहँ में रख कर सीतामाता की खोज करने समुद्र पर छलांग लगाई और उस पार लंका में पहुँच गये इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। गोस्वामी तुलसीदासजी का अभिप्राय यह है कि हमें हनुमानजी की तरह सुक्ष्म बनकर भीतर पडी हुई सुप्त शक्तियों को जागृत करना चाहिए। #HanumanChalisa #HanumanKatha
Published 02/13/21