हनुमान चालीसा की छब्बीसवीं चौपाई का हिंदी अर्थ हनुमान कथा - संकट में मदद
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Description
संकट ते हनुमान छुडावै मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ 26 ॥           हमें भगवान की मूर्ति में चित एकाग्र करने के लिए कहते हैं। ऐसी भगवान की मूर्ति लो हमारे मन में स्थापित हो भगवान की भक्ति दो प्रकार से करनी चाहिए, अन्तर्भक्ति और बहिर्भक्ति।अन्तर्भक्ति  भगवान का  मन और बुद्धि दोनों से ध्यान करना और भगवान के चरणों में मन और बुद्धि को एकाग्र करना | बहिर्भक्ति यानी जिस भगवान पर प्रेम है, उसका काम करना Subscribe & Watch More Video :: Katha Darshan https://www.youtube.com/c/kathaDarshan
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दान की महिमा तभी होती है, जब वह नि:स्वार्थ भाव से किया जाता है अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। जब इस भाव के पीछे कुछ पाने का स्वार्थ छिपा हो तो क्या वह दान रह जाता है ? यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए,...
Published 07/22/21
 पवनतनय  संकट  हरन, मंगल मूर्ति रुप । राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ।। आप संकट दूर करने वाले तथा, आप आनन्द मंगल के स्वरुप हैं ।  हे देवराज आप श्रीराम लक्ष्मण और सीताजी सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए । तुलसीदासजी हनुमानजी से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे हनुमानजी ! आप राम लक्ष्मण और सीता...
Published 07/13/21
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।  कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥ 40 ॥  हे नाथ हनुमानजी ! तुलसीदास सदा ही श्रीराम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए । हनुमान जी तुलसीदास जी के गुरु हैं। तुलसीदास जी ने हनुमानजी को अपना गुरु माना है। उनके मार्गदर्शन के अनुसार ही उन्हे भगवान श्रीराम के दश्‍​र्रन हुए ।...
Published 06/19/21