Description
हनुमान चालीसा की पंद्रहवीं चौपाई का हिंदी अर्थ
हनुमान कथा - बाण की खोज
यम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते ॥ 15 ॥
तुलसीदासजी लिखते है कि स्वयं धर्मात्मा यमराज, कुबेर, सभी दिक्पाल, पंडित कवि ये सभी हनुमानजी के गुणों का तथा निर्मल यश का गुणगान करते हैं। इन सभी को हनुमत चरित्र सुंदर, आकर्षक, दिव्य एवं भव्य लगा तथा उन्होने हनुमानजी में अनन्त गुण देखे इसीलिए वे कहते हैं कि हम भी हनुमानजी के गुणों का पूरी तरह से वर्णन नहीं कर सकते।
दान की महिमा तभी होती है, जब वह नि:स्वार्थ भाव से किया जाता है अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। जब इस भाव के पीछे कुछ पाने का स्वार्थ छिपा हो तो क्या वह दान रह जाता है ? यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए,...
Published 07/22/21
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूर्ति रुप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ।।
आप संकट दूर करने वाले तथा, आप आनन्द मंगल के स्वरुप हैं । हे देवराज आप श्रीराम लक्ष्मण और सीताजी सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए । तुलसीदासजी हनुमानजी से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे हनुमानजी ! आप राम लक्ष्मण और सीता...
Published 07/13/21
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥ 40 ॥
हे नाथ हनुमानजी ! तुलसीदास सदा ही श्रीराम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए । हनुमान जी तुलसीदास जी के गुरु हैं। तुलसीदास जी ने हनुमानजी को अपना गुरु माना है। उनके मार्गदर्शन के अनुसार ही उन्हे भगवान श्रीराम के दश्र्रन हुए ।...
Published 06/19/21