A Father’s Scars
By Sarvajeet Chandra
I scrubbed myself clean,
Of your dissapproval, doubting hands.
Your expectations, harsh demands,
Your stinging sarcasm, cold reprimands.
I cleansed my soul, in a valley of stars,
Far from the shadows, far from your scars.
I healed myself of your...
Published 09/14/24
रहगुज़र - सर्वजीत
कुछ रास्ते ऐसे होते हैं कि
इन्सान को मुसाफ़िर बना देते हैं
अगर भूल जाओ, हस्ती को अपनी
मंज़िल होगी कहीं, इसका गुमान देते हैं
बैठे बैठे सोचते हैं अक्सर कभी
बिछड़ा शहर, आँगन कैसा होगा
जिस घर को छोड़ दिया पीछे
उस घर में राह कोई देखता होगा
रास्तों में उलझा रहा अपना...
Published 09/02/24
तुम्हारे हिस्से की मोहब्बत - सर्वजीत
तुम भूल जाओ बेशक ,याद करो न कभी
उजड़े घर में तुम्हारी खुशबू अब भी आती है
तुम्हारा दीदार, सूखे सावन जैसा इंतज़ार
तुम्हारे हिस्से की तन्हाई अभी बाकी है
तुम छोड़ दो मुझे बेबस ,मँझधार में कहीं
तुम्हारी बेवफ़ाई में विवशता नज़र आती है
सूनी रात,...
Published 12/13/23