Kivaad | Kumar Ambuj
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किवाड़ | कुमार अम्बुज ये सिर्फ़ किवाड़ नहीं हैं  जब ये हिलते हैं  माँ हिल जाती है  और चौकस आँखों से  देखती है—‘क्या हुआ?’  मोटी साँकल की  चार कड़ियों में  एक पूरी उमर और स्मृतियाँ  बँधी हुई हैं  जब साँकल बजती है  बहुत कुछ बज जाता है घर में  इन किवाड़ों पर  चंदा सूरज  और नाग देवता बने हैं  एक विश्वास और सुरक्षा  खुदी हुई है इन पर  इन्हें देख कर हमें  पिता की याद आती है।  भैया जब इन्हें बदलवाने का कहते हैं माँ दहल जाती है और कई रातों तक पिता उसके सपनों में आते हैं ये पुराने हैं  लेकिन कमज़ोर नहीं  इनके दोलन में  एक वज़नदारी है  ये जब खुलते हैं  एक पूरी दुनिया  हमारी तरफ़ खुलती है  जब ये नहीं होंगे  घर  घर नहीं रहेगा। 
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तुम औरत हो | पारुल चंद्रा क्योंकि किसी ने कहा है, कि बहुत बोलती हो, तो चुप हो जाना तुम उन सबके लिए... ख़ामोशियों से खेलना और अंधेरों में खो जाना,  समेट लेना अपनी ख़्वाहिशें, और कैद हो जाना अपने ही जिस्म में… क्योंकि तुम तो तुम हो ही नहीं… क्योंकि तुम्हारा तो कोई वजूद नहीं... क्योंकि किसी के आने की...
Published 10/06/24
Published 10/06/24
ईश्वर तुम्हारी मदद चाहता है | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी  बदल सकता है धरती का रंग बदल सकता है चट्टानों का रूप बदल सकती है नदियों की दिशा बदल सकती है मौसम की गति ईश्वर तुम्हारी मदद चाहता है। अकेले नहीं उठा सकता वह इतना सारा बोझ।
Published 10/05/24