Pratidin Ek Kavita
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मेरे बेटे | कविता कादम्बरी मेरे बेटे                                                       कभी इतने ऊँचे मत होना  कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो  उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ  न कभी इतने बुद्धिजीवी  कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग  इतने इज़्ज़तदार भी न होना  कि मुँह के बल गिरो तो...
Published 06/26/24
बाद के दिनों में  प्रेमिकाएँ | रूपम मिश्रा  बाद के दिनों में प्रेमिकाएँ पत्नियाँ बन गईं वे सहेजने लगीं प्रेमी को जैसे मुफलिसी के दिनों में अम्मा घी की गगरी सहेजती थीं वे दिन भर के इन्तजार के बाद भी ड्राइव करते प्रेमी से फोन पर बात नहीं करतीं वे लड़ने लगीं कम सोने और ज़्यादा शराब पीने पर प्रेमी जो...
Published 06/25/24
ईश्वर और प्याज़ | केदारनाथ सिंह  क्या ईश्वर प्याज़ खाता है? एक दिन माँ ने मुझसे पूछा जब मैं लंच से पहले प्याज़ के छिलके उतार रहा था क्यों नहीं माँ मैंने कहा जब दुनिया उसने बनाई तो गाजर मूली प्याज़ चुकन्दर- सब उसी ने बनाया होगा फिर वह खा क्‍यों नहीं सकता प्याज़? वो बात नहीं- हिन्दू प्याज़ नहीं...
Published 06/24/24