Mere Bete | Kavita Kadambari
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Description
मेरे बेटे | कविता कादम्बरी मेरे बेटे                                                       कभी इतने ऊँचे मत होना  कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो  उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ  न कभी इतने बुद्धिजीवी  कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग  इतने इज़्ज़तदार भी न होना  कि मुँह के बल गिरो तो आँखें चुराकर उठो  न इतने तमीज़दार ही  कि बड़े लोगों की नाफ़रमानी न कर सको कभी  इतने सभ्य भी मत होना  कि छत पर प्रेम करते कबूतरों का जोड़ा तुम्हें अश्लील लगने लगे  और कंकड़ मारकर उड़ा दो उन्हें बच्चों के सामने से  न इतने सुथरे ही होना  कि मेहनत से कमाए गए कॉलर का मैल छुपाते फिरो महफ़िल में  इतने धार्मिक मत होना  कि ईश्वर को बचाने के लिए इंसान पर उठ जाए तुम्हारा हाथ  न कभी इतने देशभक्त  कि किसी घायल को उठाने को झंडा ज़मीन पर न रख सको  कभी इतने स्थायी मत होना  कि कोई लड़खड़ाए तो अनजाने ही फूट पड़े हँसी  और न कभी इतने भरे-पूरे  कि किसी का प्रेम में बिलखना  और भूख से मर जाना लगने लगे गल्प। 
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मौत इक गीत रात गाती थी ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में तेरी तस्वीर उतरती जाती थी वो तिरा ग़म हो या ग़म-ए-आफ़ाक़ शम्मअ  सी दिल में झिलमिलाती थी ज़िन्दगी  को रह-ए-मोहब्बत में मौत ख़ुद रौशनी दिखाती थी जल्वा-गर हो रहा था कोई उधर धूप इधर फीकी पड़ती जाती थी ज़िन्दगी ख़ुद को...
Published 06/28/24
सिर छिपाने की जगह  | राजेश जोशी  न उन्होंने कुंडी खड़खड़ाई न दरवाज़े पर लगी घंटी बजाई अचानक घर के अन्दर तक चले आए वे लोग उनके सिर और कपड़े कुछ भीगे हुए थे मैं उनसे कुछ पूछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि शायद तुमने हमें पहचाना नहीं । हाँ...पहचानोगे भी कैसे बहुत बरस हो गए मिले...
Published 06/27/24
Published 06/27/24