Meri Beti | Ibbar Rabbi
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मेरी बेटी | इब्बार रब्बी मेरी बेटी बनती है मैडम बच्चों को डाँटती जो दीवार है फूटे बरसाती मेज़ कुर्सी पलंग पर नाक पर रख चश्मा सरकाती (जो वहाँ नहीं है) मोहन कुमार शैलेश सुप्रिया कनक को डाँटती ख़ामोश रहो चीख़ती डपटती कमरे में चक्कर लगाती है हाथ पीछे बांधे अकड़ कर फ़्रॉक के कोने को साड़ी की तरह सम्हालती कॉपियाँ जाँचती वेरी पुअर गुड कभी वर्क हार्ड के फूल बरसाती टेढ़े-मेढ़े साइन बनाती वह तरसती है माँ पिता और मास्टरनी बनने को और मैं बच्चा बनना चाहता हूँ बेटी की गोद में गुड्डे-सा जहाँ कोई मास्टर न हो!
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तुम औरत हो | पारुल चंद्रा क्योंकि किसी ने कहा है, कि बहुत बोलती हो, तो चुप हो जाना तुम उन सबके लिए... ख़ामोशियों से खेलना और अंधेरों में खो जाना,  समेट लेना अपनी ख़्वाहिशें, और कैद हो जाना अपने ही जिस्म में… क्योंकि तुम तो तुम हो ही नहीं… क्योंकि तुम्हारा तो कोई वजूद नहीं... क्योंकि किसी के आने की...
Published 10/06/24
Published 10/06/24
ईश्वर तुम्हारी मदद चाहता है | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी  बदल सकता है धरती का रंग बदल सकता है चट्टानों का रूप बदल सकती है नदियों की दिशा बदल सकती है मौसम की गति ईश्वर तुम्हारी मदद चाहता है। अकेले नहीं उठा सकता वह इतना सारा बोझ।
Published 10/05/24