S03E01 Jaun Elia - Hum Kahan Aur Tum Kahan Jaana - Podcast
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S03E01 Jaun Elia - Hum Kahan Aur Tum Kahan Jaana - Podcast Step into the mesmerizing world of Jaun Elia's timeless ghazals as Ravi, a passionate connoisseur of Urdu poetry, recites and delves deep into the enchanting verses that have captivated hearts for generations. Join us on this poetic journey filled with emotion, nostalgia, and profound insights into the works of the legendary Jaun Elia. हम कहाँ और तुम कहाँ जानाँ हैं कई हिज्र दरमियाँ जानाँ राएगाँ वस्ल में भी वक़्त हुआ पर हुआ ख़ूब राएगाँ जानाँ मेरे अंदर ही तो कहीं गुम है किस से पूछूँ तिरा निशाँ जानाँ आलम-ए-बेकरान-ए-रंग है तू तुझ में ठहरूँ कहाँ कहाँ जानाँ मैं हवाओं से कैसे पेश आऊँ यही मौसम है क्या वहाँ जानाँ रौशनी भर गई निगाहों में हो गए ख़्वाब बे-अमाँ जानाँ दर्द-मंदान-ए-कू-ए-दिलदारी गए ग़ारत जहाँ तहाँ जानाँ अब भी झीलों में अक्स पड़ते हैं अब भी नीला है आसमाँ जानाँ है जो पुर-ख़ूँ तुम्हारा अक्स-ए-ख़याल ज़ख़्म आए कहाँ कहाँ जानाँ _________________________________________ उस के पहलू से लग के चलते हैं हम कहीं टालने से टलते हैं बंद है मय-कदों के दरवाज़े हम तो बस यूँही चल निकलते हैं मैं उसी तरह तो बहलता हूँ और सब जिस तरह बहलते हैं वो है जान अब हर एक महफ़िल की हम भी अब घर से कम निकलते हैं क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं है उसे दूर का सफ़र दर-पेश हम सँभाले नहीं सँभलते हैं शाम फ़ुर्क़त की लहलहा उट्ठी वो हवा है कि ज़ख़्म भरते हैं है अजब फ़ैसले का सहरा भी चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं ______________________________________ हम जी रहे हैं कोई बहाना किए बग़ैर उस के बग़ैर उस की तमन्ना किए बग़ैर अम्बार उस का पर्दा-ए-हुरमत बना मियाँ दीवार तक नहीं गिरी पर्दा किए बग़ैर याराँ वो जो है मेरा मसीहा-ए-जान-ओ-दिल बे-हद अज़ीज़ है मुझे अच्छा किए बग़ैर मैं बिस्तर-ए-ख़याल पे लेटा हूँ उस के पास सुब्ह-ए-अज़ल से कोई तक़ाज़ा किए बग़ैर उस का है जो भी कुछ है मिरा और मैं मगर वो मुझ को चाहिए कोई सौदा किए बग़ैर ये ज़िंदगी जो है उसे मअन
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S03E07 Saleem Kausar - Main Khayal Hoon Kisi Aur Ka, Mujhe Sochta Koi Aur Hai मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे माँगता कोई और है अजब...
Published 03/16/24
S03E06 Guftagu Sharaab Par - Zahid sharaab peene de, masjid me baith kar Zahid sharaab peene de, masjid me baith kar Ya wo jagah bata, jahan khuda nahi ~ Mirza Ghalib Iss par Allama Iqbal saahab ka jawaab aata hai Masjid khuda ka ghar hai, peene ki jagah nahi Kaafir ke dil me jaa, wahan...
Published 03/03/24