Description
गुरु-वन्दना :
।। ॐ श्री सद्गुरुदेव भगवान् की जय ।।
जय सद्गुरुदेवं, परमानन्दं, अमर शरीरं अविकारी।।
निर्गुण निर्मूलं, धरि स्थूलं, काटन शूलं भवभारी।।
सूरत निज सोहं, कलिमल खोहं, जनमन मोहन छविभारी।।
अमरापुर वासी, सब सुख राशी, सदा एकरस निर्विकारी।।
अनुभव गम्भीरा, मति के धीरा, अलख फकीरा अवतारी।।
योगी अद्वैष्टा, त्रिकाल द्रष्टा, केवल पद आनन्दकारी।।
चित्रकूटिंह आयो, अद्वैत लखायो, अनुसुइया आसन मारी।।
श्रीपरमहंस स्वामी, अन्तर्यामी, हैं बड़नामी संसारी।।
हंसन हितकारी, जग पगुधारी, गर्व प्रहारी उपकारी।।
सत्-पंथ चलायो, भरम मिटायो, रूप लखायो करतारी।।
यह शिष्य है तेरो, करत निहोरो, मोपर हेरो प्रणधारी।।
जय सद्गुरु………भारी।।
।। ॐ ।।
भगवान् श्रीकृष्णो यस्मिन् काले गीतायाः सदुपदेशं प्रादात्, तदानीं तस्य मनोभावाः कीदृशा आसन्? ते सर्वे मनोगता भावा वक्तुं न शक्यन्ते। केचन सन्ति भावा वर्णयितुं योग्याः केचन भावभङ्गिमयैव प्रकटयितुमर्हाः, अपरे शेषा भावाः क्रियात्मकाः सन्ति, तान् भावान् कोऽपि जनस्तत्पथमारुह्यैव ज्ञातुं शक्नोति।...
Published 12/14/17
श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसम्वादे ‘संशयविषादयोगो’ नाम प्रथमोऽध्यायः।
Published 12/14/17