"तू नज़्म नज़्म सा मेरे होठों पे ठहर जा...."
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"तू नज़्म नज़्म सा मेरे होठों पे ठहर जा...." शोध और आलेख _- सुजॉय चटर्जी वचन और प्रस्तुति - संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। आज के अंक के लिए हमने चुना है वर्ष 2017 की फ़िल्म ’बरेली की बर्फ़ी’ का गीत "तू नज़्म नज़्म सा मेरे होठों पे ठहर जा"। अर्को की आवाज़, अर्को के ही बोल और उन्हीं का संगीत। MBBS की डिग्री और गोल्ड मेडल लेकर अर्को कैसे फ़िल्म जगत में संगीतकार, गीतकार और पार्श्वगायक बने? इस गीत का मुखड़ा और इसके अन्तरे अलग-अलग समय काल में क्यों लिखे गए? इस गीत में कौन सी बड़ी ग़लती हुई है? इस गीत के कितने संस्करण हैं? फ़िल्म बरेली की बर्फ़ी’ के इस गीत और इस फ़िल्म से जुड़ी कुछ और बातें, आज के इस अंक में।
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परिकल्पना : सजीव सारथी आलेख : सुजॉय चटर्जी स्वर : रचिता देशपांडे प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को...
Published 05/29/24
Published 05/29/24
परिकल्पना : सजीव सारथी आलेख : सुजॉय चटर्जी स्वर : शिवम मिश्रा प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को...
Published 05/21/24