Description
आलेख : सुजॉय चटर्जी
वाचन : सुमेधा अग्रश्री
प्रस्तुति : संज्ञा टंडन
नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुनी है 1999 की फ़िल्म ’कच्चे धागे’ की क़व्वाली "इस शान-ए-करम का क्या कहना"। नुसरत फ़तेह अली ख़ान और साथियों की आवाज़ें, पुरनम इलाहाबादी और आनन्द बक्शी के बोल, और नुसरत फ़तेह अली ख़ान का संगीत। इस क़व्वाली के बहाने जाने नुसरत फ़तेह अली ख़ान और उनके बॉलीवूड सफ़र की दास्तान। इस क़व्वाली के शाइर के नाम के साथ कैसा संशय जुड़ा हुआ है? फ़िल्म की कहानी के संदर्भ में इस क़व्वाली का फ़िल्म में क्या महत्व है? जिन पर यह क़व्वाली फ़िल्मायी गई है, उस फ़िल्मांकन की क्या ख़ास बात है? मूल रचना के ऊपर कौन सी अतिरिक्त लाइनें इस क़व्वाली में जोड़ी गई हैं? ये सब आज के इस अंक में।
परिकल्पना : सजीव सारथी
आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : रचिता देशपांडे
प्रस्तुति : संज्ञा टंडन
नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं
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Published 05/29/24
परिकल्पना : सजीव सारथी
आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : शिवम मिश्रा
प्रस्तुति : संज्ञा टंडन
नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को...
Published 05/21/24