ऐ मेरे हमसफ़र, इक ज़रा इन्तज़ार...
Description
आलेख : सुजॉय चटर्जी
वाचन : अनीश श्रीवास
प्रस्तुति : संज्ञा टंडन
नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1988 की फ़िल्म ’क़यामत से क़यामत तक’ का गीत - "ऐ मेरे हमसफ़र, इक ज़रा इन्तज़ार"। उदित नारायण और अलका यागनिक की आवाज़ें, मजरूह सुल्तानपुरी के बोल, और आनन्द-मिलिन्द का संगीत। नासिर हुसैन ने मनसूर ख़ान के सामने मजरूह-आनन्द-मिलिन्द और समीर-आर.डी.बर्मन की जोड़ियों में से किसी एक जोड़ी को चुनने की शर्त क्यों रख दी? मजरूह साहब ने फ़िल्म के किस सिचुएशन के लिए यह गीत लिखा? इस फ़िल्म में अलका यागनिक की कौन सी ख़्वाहिश पूरी हुई? आनन्द-मिलिन्द और उदित नारायण की मुलाक़ात कैसे हुई? यह फ़िल्म रिलीज़ होने पर उदित नारायण को ऐसा क्यों लगा कि उन्हें अब अपने गांव लौट जाने में ही भलाई है? ये सब, आज के इस अंक में।
परिकल्पना : सजीव सारथी
आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : मातृका
प्रस्तुति : संज्ञा टंडन
नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं
को समेटता...
Published 06/04/24
परिकल्पना : सजीव सारथी
आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : रचिता देशपांडे
प्रस्तुति : संज्ञा टंडन
नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं
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Published 05/29/24