"विचित्र होली" written by Munshi Premchand ji
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आत्मसम्मान और आत्माभिमान से बढ़ कर कुछ भी नही......
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कभी कभी हमारी अधूरी इच्छाएं, अधूरी आकांक्षाएं हमारा पीछा परलोक तक भी करती है शायद .....
Published 08/09/23
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