Description
ये उन दिनों की बात है कि जब चचा जान अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे और उन दिनों गेट नम्बर दो पर एक पीसीओ होता था। पीसीओ के मालिक रमज़ानी भाई से चचा की दोस्ती थी। दिनभर चाय का दौर चलता रहता। लेकिन उन दिनों फोन पर किसी को बुला देना का बड़ी रवायत थी। फोन आता है कि भई फलां बोल रहे हैं, फलां को बुला दीजिए। दिन भर मोहल्लेदारी में किसी न किसी को बुलाना होता था... पर फोन जब आता था तो मैं और रमज़ानी भाई का चेहरा खिल जाता था। ये कॉल था किसी आबिदा का होता था, जो कहती थीं कि हाजी साहब की बेटी रुकसाना को बुलाने के लिए कहती थीं। रुकसाना को बुलाने के लिए चचा नंगे पाँव दौड़ जाते थे। पर उन्हें नहीं पता था कि इस राह में एक बहुत बड़ा खतरा उनका इंतज़ार कर रहा है। - सुनिए कहानी 'चचाजान की लव मैरिज' स्टोरीबॉक्स में जमशेद कमर सिद्दीक़ी से.