डाकटर साहब | स्टोरीबॉक्स | EP 67
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Description
पुराने लखनऊ में वो करीब सौ साल पुरानी क्लीनिक थी जिसमें डाकटर साहब एक बड़ी सी मेज़ के पीछे बैठते थे। पीछे अलमारी में सैकड़ों दवाएं सजी रहती थीं जिसे शायद अर्से से खोला नहीं गया था। डॉकटर खान के हाथों में बड़ी शिफ़ा थी। नाक कान गले के डॉक्टर थे और दो खुराक में पुराने से पुराना मर्ज़ ठीक हो जाता था। बस एक दिक्कत थी और वो ये कि 'डाकटर साहब' डांटते बहुत थे। एक बार पर्चे पर लिखी दवा समझाते थे, आप समझ गए तो ठीक और नहीं समझे तो दोबारा पूछने पर डांट पड़ती थी। एक बार मेरा भी तजुर्बा हुआ उनसे दवा लेने का। मैं पहुंचा तो देखा देखा उम्रदराज़ डॉक्टर साहब अपनी सीट पर बैठे हैं लेकिन कौन जानता था कि वो दिन मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा - सुनिए स्टोरीबॉक्स में 'डाकटर साहब' जमशेद कमर सिद्दीक़ी से
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कानपुर रेलवे स्टेशन पर रिज़र्वेशन की लाइन में खड़े एक शख्स ने जब खिड़की से पैसा अंदर बाबू की तरफ बढ़ाया तो उसने कहा कि ये नोट नकली है लेकिन नकली नोट की वजह से वो कैसे मिल गए अपनी उस मुहब्बत से जिसकी तलाश में सालों से यहां वहां मजनूँ बने घूम रहे थे - सुनिए स्टोरीबॉक्स में क़िस्सा नकली नोट का -...
Published 06/02/24
इतनी रात के वक्त यहां क्या कर रहे हो? पुलिस अफ़सर ने उससे पूछा तो उसने कहा, "मैं अपने पुराने दोस्त का इंतज़ार कर रहा हूं। बीस साल पहले हमनें यहीं मिलने का वादा किया था" कुछ देर बाद एक शख्स आया और उसने बढ़ाते हुए कहा, "तुम बॉब हो?" बॉब ने झिझकते हुए हाथ तो बढ़ा दिया पर उसे शक था कि ये उसका दोस्त...
Published 05/26/24