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उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।6.5।। पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते। नहि कल्याणकृत्कश्िचद्दुर्गतिं तात गच्छति।।6.40।। तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्। सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ।।14.6।। काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः। मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः।।16.10।। यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्। उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।।17.10।। --- Support this podcast:...
Published 05/30/21
Great Motivation --- Support this podcast: https://anchor.fm/mukeshsoni/support
Published 03/24/21
Published 03/24/21
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति। तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्।।7.21।।  तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्। भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।।12.7।। अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते। तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।।13.25 सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवाः। निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्।।14.5।। उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम्। विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः।।15.10।। --- Support this...
Published 02/24/21
आपकी हर समस्या का समाधान --- Support this podcast: https://anchor.fm/mukeshsoni/support
Published 02/15/21
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना। श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।6.47।।  साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः। प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः।।7.30।। वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्। अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्।।8.28।। मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।9.34।। अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन। विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्।।10.42।। --- Support...
Published 02/03/21
Motivation for life --- Support this podcast: https://anchor.fm/mukeshsoni/support
Published 01/29/21
The ultimate Goal of Life --- Support this podcast: https://anchor.fm/mukeshsoni/support
Published 01/22/21
अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः। निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम्।।2.36।। न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।।4.38।। इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत। सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप।।7.27।। अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते। इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः।।10.8।। निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः। द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।। ---...
Published 01/11/21
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Published 01/05/21
शौचात्स्वाङ्गजुगुप्सा परैरसंसर्गः।।2.40।। shauchat svanggajugupsa parairasansargah सत्त्वशुद्धिसौमनस्यैकग्र्येन्द्रियजयात्मदर्शनयोग्यत्वानि च।।2.41।। sattvashuddhisaumanasyaikagryendriyajayatmadars hanayojnatvani cha संतोषादनुत्तमः सुखलाभः।।2.42।। santoshad anuttamah sukhalabhah कायेन्द्रियसिद्धिरशुद्धिक्षयात्तपसः।।2.43।। kayendriyasiddhirashuddhikshayat tapasah स्वाध्यायादिष्टदेवतासंप्रयोगः।।2.44।। svadhyayad...
Published 11/01/20
मोटिवेशनल स्टोरी --- Support this podcast: https://anchor.fm/mukeshsoni/support
Published 10/16/20
तस्य सप्तधा प्रान्तभूमिः प्रज्ञा।।2.27।। tasya saptadhaa prantabhoomih prajna योगाङ्गानुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिरा विवेकख्यातेः।।2.28।। yogangganushthanad ashuddhikshaye jnanadiptira vivekakhyate यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि।।2.29।। yamaniyamasanapranayamapratyaharadharanadhy anasamadhayo-a-shtava anggani अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः।।2.30।। ahinsasatyasteyabrahmacharyaparigraha yamah जातिदेशकालसमयानवच्छिन्ना सार्वभौमा...
Published 10/09/20
Hindi kavita
Published 10/03/20
मेरा कमरा छोटा है, पर दो-दो है इसके दरवाजे एक खुला है दूजा है बंद पर बंद दरवाजा ही है मेरी पसंद  मैं बार-बार इससे होकर गुजरना चाहता हूं  और इसके लिए अपना पूरा जोर लगाता हूं  पर कमबख्त खुलता ही नहीं  और जो खुला है  वह मुझे देख हंसता है और कहता है  देखते क्यों नहीं मुझे अपनी आंखों से? छूते क्यों नहीं मुझे अपनी हाथों से? आखिर क्यों मुझसे होकर नहीं जाते? बात क्या है जो मुझसे छुपाते? अब हे प्रभु मुझे बताओ  मैं किस दरवाजे से होकर बाहर जाऊं  और अपने जीवन को सफल बनाऊं।
Published 09/30/20
ते ह्लादपरितापफलाः पुण्यापुण्यहेतुत्वात्।।2.14।। te hladaparitapafalah punyapunyahetutvat परिणाम तापसंस्कार दुःखैर्गुणवृत्तिविरोधाच्च दुःखमेव सर्वं विवेकिनः।।2.15।। parinamatapasanskaraduhkhairgunnavritti -virodhaccha duhkham eva sarvan vivekinah हेयं दुःखमनागतम्।।2.16।। heyan duhkham anagatam द्रष्टृदृश्ययोः संयोगो हेयहेतुः।।2.17।। drashtridrishyayoh sanyogo heyahetuh प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मकं भोगापवर्गार्थं दृश्यम्।।2.18।। prakashakriyasthitishilan...
Published 09/30/20
परमाणुपरममहत्त्वान्तोऽस्य वशीकारः।।1.40।। क्षीणवृत्तेरभिजातस्येव मणेर्ग्रहीतृग्रहणग्राह्येषु तत्स्थतदञ्जनता समापत्तिः।।1.41।। तत्र शब्दार्थज्ञानविकल्पैः संकीर्णा सवितर्का समापत्तिः।।1.42।। स्मृतिपरिशुद्धौ स्वरूपशून्येवार्थमात्रनिर्भासा निर्वितर्का।।1.43।। एतयैव सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्मविषया व्याख्याता।।1.44।। सूक्ष्मविषयत्त्वं चालिङ्गपर्यवसानम्।।1.45।। ता एव सबीजः समाधिः।।1.46।। निर्विचारवैशारद्येऽध्यात्मप्रसादः।।1.47। ऋतंभरा तत्र...
Published 09/26/20
तस्य वाचकः प्रणवः।।1.27।। तज्जपस्तदर्थभावनम्।।1.28।। ततः प्रत्यक्चेतनाधिगमोऽप्यन्तरायाभावश्च।।1.29।। व्याधिस्त्यानसंशयमप्रमादालस्याविरतिभ्रान्तिदर्शनालब्धभूमिकत्वानवस्थितत्वानि चित्तविक्षेपास्तेऽन्तरायाः।।1.30।। दुःखदौर्मनस्याङ्गमेजयत्वश्वासप्रश्वासा विक्षेपसहभुवः।।1.31।। तत्प्रतिषेधार्थमेकतत्त्वाभ्यासः।।1.32।। मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भावनातश्चित्तप्रसादनम्।।1.33।। प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य।।1.34।। विषयवती वा प्रवृत्तिरुत्पन्ना मनसः...
Published 09/26/20
स तु दीर्घकालनैरंन्तर्यसत्कारासेवितो दृढ़भूमिः।।1.14।। दृष्टानुश्रविकविषयवितृष्णस्य वशीकारसंज्ञा वैराग्यम्।।1.15।। तत्परं पुरुषख्यातेर्गुणवैतृष्ण्यम्।।1.16।। वितर्कविचारानन्दास्मितारूपानुगमात्संप्रज्ञातः।।1.17।। विरामप्रत्ययाभ्यासपूर्वः संस्कारशेषोऽन्यः।।1.18।। भवप्रत्ययो विदेहप्रकृतिलयानाम्।।1.19।। श्रद्धावीर्यस्मृतिसमाधिप्रज्ञापूर्वक इतरेषाम्।।1.20।। तीव्रसंवेगानामासन्नः।।1.21।। मृदुमध्याधिमात्रत्वात्ततोऽपि विशेषः।।1.22।। ईश्वरप्रणिधानाद्वा।।1.23।। क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः...
Published 09/26/20
Formula, that change your life
Published 09/24/20
।।४०।। मुर्झा न पाये जो कभी ऐसी है प्रेम की माला, जीवन है गुलबाग बना, जब से अपने पर डाला। ।।४१।। चुपके से आकर उसने, की है दिल की चोरी लिख डाली प्यार की लिपि, जो थी अभी तक कोरी। ।।४२।। सपनों में उनको देखूं, जाने कैसी है निद्रा प्रेम सुधा बरसाए ऐसी उनकी है मुद्रा। ।।४३।। पाषाण बने कोई दिल से कैसे प्यार को जाने फूलों सा जिनका दिल हो, बस वही प्यार को माने। ।।४४।। लहराये बलखाये, जैसे हो कोई सरिता होठों से अपने हँस - हँस, देती है मुझको कविता। ।।४५।। कोई भी उत्सव हो मगर, दिल को खुशी नहीं है उनकी...
Published 09/21/20
।।२७।। हँस-हँस कर, रो-रो कर करता हूँ उनसे बातें। अब उनकी ही यादों में, कटती है अपनी रातें। ।।२८।। वह खूब घड़ी थी शायद जब हमसे वे मिले थे तब मेरे भी बगियाँ में कुछ सुन्दर फूल खिले थे। ।।२९।। हँसने रोने की उनकी, हर एक अदा है निराली, आकर जरा तो देखो है वो कितनी भोली-भाली। ।।३०।। उनके श्यामल छवि का, हो गया हूँ मैं तो कायल, साधारण प्रेमी जैसा, मैं भी हुआ हूँ घायल। ।।३१।। कब सोचा था मैंने, एक ऐसा संसार मिलेगा, चाहत की फुलवारी होगी, मुझको भी प्यार मिलेगा। ।।३२।। जाने अनजाने ही सही, सबको हो जाता...
Published 09/21/20
।।१४।। अलकों-पलकों की कथाएँ, कहूँ क्या मैं सबको, मैं रोज गगन छूता हूँ मिला हूँ जब से उनको। ।।१५।। सुनाने को सुना मैं दू पर कौन सुनेगा यह कहानी? बात ही कुछ ऐसी है जैसे हो बहता पानी। ।।१६।। कैसे मैं सुनाऊँ सबको, अपनी यह प्रेम कहानी, कोई प्रमाण नहीं है, न है कोई भी निशानी। ।।१७।। दुविधा के उन क्षणों में, जब मैंने उनको देखा, तब से उनको है माना, अपने जीवन की रेखा। ।।१८।। उनकी आँखें अब हर पल, मुझको घेरा करती है कुछ जानी कुछ अनजानी, सैकड़ों बातें करती है। ।।१९।। अब मेरे शून्य हृदय में, बस उनका है...
Published 09/20/20
।।१।। प्रिय मिले जब से, आई जीवन में उमंग, फैल रही है जीवन में, धीरे-धीरे प्रेम रंग । ।।२।। जान लिया मैंने भी तो, प्रेम का अद्भुत रहस्य दूर हो गयी जाने कैसे, मेरे जीवन का आलस्य। ।।३।। कैसे जाने वे आए, हृदय में मेरे एकाएक, हो उठा तन-मन पुलकित, होठों से जब किया अभिषेक। ।।४।। ले जायेगी जो मुझको, मिली मुझे अब वे राहें, पास आ गई मेरी मंजिल, डाली जब अपनी बाँहे। ।।५।। हर वो खुशियाँ पाई मैंने, की थी जो - जो अभिलाषा, बात दिलों की जान सका, जब जानी प्यार की परिभाषा। ।।६।। मैं ही मैं जीवन में था, कितना...
Published 09/20/20
कौन नहीं चाहता उसका नाम हो जाए? जिंदगी में एक हंसी मुकाम हो जाए । पर! पर यह पानी पीने जैसी तो चीज नहीं भला कैसे यह कठिन काम हो जाए। समय के पास समय नहीं कि सभी का सुने सभी का हो जाए और सभी के लिए कुछ पद दे जाए। आकाश में असंख्य तारे हैं जिनमें सूर्य भी एक है क्या संभव है, सभी तारे सूर्य हो जाए ? और यदि ऐसा हो भी जाए तो सारी सृष्टि खाक हो जाए। क्या संभव है सभी का नाम हो जाए? MUKESH KUMAR SONI NET Qualified in Yoga M.A. in Yoga,M.A. in Hindi, Post Graduate in Yoga and...
Published 09/17/20