सवाल तो कई हैं पर अब घर तो घर है, जरूरतों को पूरा करने का घर, तन का घर-मन का घर, मेरा घर, उसका घर, छत वाला घर, खपरैलों में छुपा घर या फिर एक अपना घर यानि इश्क़। पर इस घर में हम जी तो सकते हैं, मर नहीं सकते। हमें मरने के लिए भी तो घर चाहिए...
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Published 04/09/24
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पुराने वृक्षों की खाल की रन्ध्रों में
उग आते हैं छोटे-बड़े छातेनुमा
पीले, मटमैले मशरूम
मेरी पुरानी स्मृतियों में जिस तरह
तुम्हारा उग आना होता है
मटमैली, पीली, धुँधली सी हो कर
किसी विंटेज खिड़की से
थोड़ी सुन्दर
लेकिन छू लेने
महसूसने
पकड़ने से बहुत दूर
क्षणिकाओं की...
Published 01/20/24