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धर्म, जीवन के साथ जा कर हर जन्म का नया रूप बनता है , धन जीवन के साथ ही नष्ट हो जाता है ।
Published 01/16/22
भगवान ने हमें बताया- "सही अर्थों में सचमुच ही सच्ची भावना ले कर मुझ तक आने की आकाँक्षा तुम्हारे मन में जाग गई तो सच्ची भावना का रूप, वह किसी भी रूप में हो, मुझसे दूर नहीं रहता; और उस रूप में जो मुझ तक आना चाहता है, स्वयं मैं ही उसका सहारा बनता, उसका हाथ पकड़ लेता हूँ।"
Published 09/09/21
असाधारण ही होता है वह युग, जिस युग में परमपिता परमात्मा धरा पर धर्म संस्थापन के लिए अवतरित होते हैं । आज हम आप बहुत भाग्यशाली हैं, जो अपने जन्मों-जन्मों के पुण्यों के संचय के कारण, आज परमात्मा की पहचान हुई है, उनका मार्गदर्शन मिल रहा है, उनकी निकटता मिली है और उनकी सेवा करने का अवसर मिला है । ईश्वर तो सर्वसमर्थ है, उन्हें किसी की सहायता की कोई आवश्यकता नहीं है, वह अकेले ही संपूर्ण ब्रह्मांड को संचालित करते रहते हैं , लेकिन जब वे मानव रूप में धरा पर आते हैं, तो नर लीला करते हैं और हम मनुष्यों...
Published 07/20/21
अपना मन खोल कर देखो कि क्या कभी अपने आप में कुछ इच्छा होती है मेरे लिये कुछ करने की? अर्थात मेरे आदेश को पूरा करने के लिये कुछ भी दे देने की, कुछ भी कर देने की। तन-मन-धन सभी कुछ अपने लिये रख कर भी कहते हो की तुम्हारा इसमें कुछ भी अपना नहीं। सब कुछ मेरा ही है। यह छद्म रूप बदल डालो, क्योंकि अब समय छद्म-रूपों पर चढ़े आवरण के उतरने का ही आ गया है; और इसके पहिले कि मैं तुम्हारे उन आवरणों को उतारूँ, अगर स्वयं ही अपना छद्म रूप छोड़ कर मेरे चरणों में आ जाओगे तो तुम्हारा वह साहस भी सत्य...
Published 06/17/21
भगवान की वाणी के दिव्य वचन- "मनुष्य अपने जीवन के वे क्षण, जिनमें उसे अपने शरीर की सेवा नहीं करनी होती, मुझे इस रूप में अर्पित करने का प्रयास करे, कि मन उसी में समा कर एकरूप हो जाये। वाणी का हर अक्षर, जितना ही अधिक मन में समाने का प्रयास करोगे, जीवन में जितना ही उतारने का प्रयास करोगे, स्वयं ही उसकी शक्ति प्राप्त करते जाओगे। वाणी के एक-एक अक्षर में शक्ति को भण्डार है। स्वयं शक्ति का स्रोत ही है, यह वाणी। बिना पढ़े, बिना मनन किये, क्या पा सकोगे उस शक्ति को?"
Published 05/28/21
आध्यात्मिक गुरु दिव्य शक्ति मां पूनम जी के श्री मुख से सुने दिव्य ज्ञान प्रवचन। ईश्वर में पूर्ण आस्था ही वह मंत्र है, जो व्यक्ति को हर पीड़ा, कष्ट, रोग तथा बाधा से मुक्ति दिलाता है, जो व्यक्ति को कठिन से कठिन परिस्थिति में भी टूटने नहीं देता ।
Published 05/11/21
मानव का धर्म होता है मानवता । मानवता की रक्षा करना धर्म की ही रक्षा करना होता है; लेकिन धर्म की रक्षा के पहले धर्म-अधर्म का अंतर जानना आवश्यक होता है, जिसका ज्ञान मिलता है, परमात्मा के अंश आत्मा से; जो सब ही प्राणियों की जीवनी शक्ति है। अपनी आत्मा द्वारा मिल रहे इस ज्ञान की रक्षा करो, जिसको तुमने अपने स्वार्थों की अनेक पर्तों के नीचे दबा रक्खा है, तब ही तुम्हें जीवन की दिशा और उस दिशा पर चल कर सफलता प्राप्त होगी।
Published 05/06/21
यतो धर्मस्य ततो जय: धर्म से जीवन की रक्षा होती है। जहां धर्म है वहीं विजय है। जहां अधर्म है वहां पराजय है। इस ध्येयवाक्य का अर्थ महाभारत के श्लोक 'यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः से आता है. कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन युधिष्ठिर की अकर्मण्यता को दूर कर उन्हें प्रेरित करने की कोशिश कर रहे थे. वह युधिष्ठिर से कहते हैं, "विजय सदा धर्म के पक्ष में रहती है, और जहां श्रीकृष्ण हैं, वहां धर्म है।
Published 05/03/21
शक्ति माँ ने हमें चेतावनी दी थी कि अगर हम अपने अत्याचारों को नहीं रोकेंगे तो मानवता के लिए आगे क्या होगा। उन्होंने हमें हमारे कार्यों की परिणति के बारे में बताया।
Published 05/03/21
शक्ति माँ ईश्वर के इस युग, लिपि रूप की *अभिव्यक्ति* की शक्ति का अवतार है। वर्षों की कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के *साथ* उन्होने *साबित* कर दिया है कि जब आप भगवान के *कार्य* के लिए समर्पित होते हैं तो कोई भी बाधा बहुत बड़ी नहीं होती है। जीवन में, जब आप *कार्य* करने के लिए निकलते हैं- बहुत सी बाधाएँ आती हैं और जब तक आप स्वयं की मदद करने के लिए तत्पर नहीं होते हैं तब तक कोई चमत्कार की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। जब आपको ईश्वर का कुमक प्राप्त होता है, तो यह न केवल सांसारिक बंधनों के लिए, बल्कि...
Published 05/03/21