सद्गुरुओं के अनूठे ढंग (अष्‍टावक्र : महागीता - 72)
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सद्गुरुओं के अनूठे ढंग (अष्‍टावक्र : महागीता - 72)
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अष्टावक्र उवाच। अकर्तृत्वमभोक्तृत्वं वात्मनो मन्यते यदा। तदा क्षीणा भवंत्येव समस्ताश्चित्तवृत्तयः।। 227।। उच्छृंखलाप्यकृतिका थतिर्धीरस्य राजते। न तु संस्पृहचित्तस्य शांतिर्मूढ़स्य कृत्रिमा।। 228।। विलसन्ति महाभोगेैर्विशन्ति गिरिगह्वरान्‌। निरस्तकल्पना धीरा अबद्धा मुक्तबुद्धयः।। 229।। श्रोत्रियं...
Published 03/20/22
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Published 03/19/22