Uth Jaag Musafir | Vanshidhar Shukla
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Description
उठ जाग मुसाफ़िर | वंशीधर शुक्ल उठ जाग मुसाफ़िर! भोर भई,  अब रैन कहाँ जो सोवत है।  जो सोवत है सो खोवत है,  जो जागत है सो पावत है।  उठ जाग मुसाफ़िर! भोर भई,  अब रैन कहाँ जो सोवत है।  टुक नींद से अँखियाँ खोल ज़रा  पल अपने प्रभु से ध्यान लगा,  यह प्रीति करन की रीति नहीं  जग जागत है, तू सोवत है।  तू जाग जगत की देख उड़न,  जग जागा तेरे बंद नयन,  यह जन जाग्रति की बेला है,  तू नींद की गठरी ढोवत है।  लड़ना वीरों का पेशा है,  इसमें कुछ भी न अंदेशा है;  तू किस ग़फ़लत में पड़ा-पड़ा  आलस में जीवन खोवत है।  है आज़ादी ही लक्ष्य तेरा,  उसमें अब देर लगा न ज़रा;  जब सारी दुनिया जाग उठी  तू सिर खुजलावत रोवत है।  उठ जाग मुसाफ़िर! भोर भई  अब रैन कहाँ जो सोवत है। 
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परिन्दे पर कवि को पहचानते हैं - राजेश जोशी  सालिम अली की क़िताबें पढ़ते हुए मैंने परिन्दों को पहचानना सीखा। और उनका पीछा करने लगा पाँव में जंज़ीर न होती तो अब तक तो . न जाने कहाँ का कहाँ निकल गया होता हो सकता था पीछा करते-करते मेरे पंख उग आते और मैं उड़ना भी सीख जाता जब परिन्दे गाना शुरू...
Published 07/02/24
एक तिनका | अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’  मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ। एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा। आ अचानक दूर से उड़ता हुआ। एक तिनका आँख में मेरी पड़ा। मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा। लाल होकर आँख भी दुखने लगी। मूँठ देने लोग कपड़े की लगे। ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी। जब किसी ढब से निकल तिनका...
Published 07/01/24
Published 07/01/24