Dahi Jamane Ko Thoda Sa Jaman Dena | Yash Malviya
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Description
दही जमाने को, थोड़ा-सा जामन देना | यश मालवीय मन अनमन है, पल भर को  अपना मन देना  दही जमाने को, थोड़ा-सा  जामन देना  सिर्फ़ तुम्हारे छू लेने से  चाय, चाय हो जाती  धूप छलकती दूध सरीखी  सुबह गाय हो जाती  उमस बढ़ी है, अगर हो सके  सावन देना  दही जमाने को, थोड़ा-सा  जामन देना  नहीं बाँटते इस देहरी  उस देहरी बैना  तोता भी उदास, मन मारे  बैठी मैना  घर से ग़ायब होता जाता,  आँगन देना  दही जमाने को, थोड़ा-सा  जामन देना अलग-अलग रहने की  ये कैसी मजबूरी  बहुत दिन हुए, आओ चलो  कुतर लें दूरी  आ जाना कुछ पास,  ज़रा-सा जीवन देना। दही जमाने को, थोड़ा-सा  जामन देना 
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मौत इक गीत रात गाती थी ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में तेरी तस्वीर उतरती जाती थी वो तिरा ग़म हो या ग़म-ए-आफ़ाक़ शम्मअ  सी दिल में झिलमिलाती थी ज़िन्दगी  को रह-ए-मोहब्बत में मौत ख़ुद रौशनी दिखाती थी जल्वा-गर हो रहा था कोई उधर धूप इधर फीकी पड़ती जाती थी ज़िन्दगी ख़ुद को...
Published 06/28/24
सिर छिपाने की जगह  | राजेश जोशी  न उन्होंने कुंडी खड़खड़ाई न दरवाज़े पर लगी घंटी बजाई अचानक घर के अन्दर तक चले आए वे लोग उनके सिर और कपड़े कुछ भीगे हुए थे मैं उनसे कुछ पूछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि शायद तुमने हमें पहचाना नहीं । हाँ...पहचानोगे भी कैसे बहुत बरस हो गए मिले...
Published 06/27/24
Published 06/27/24