Dua | Manmeet Narang
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Description
दुआ | मनमीत नारंग कतरनें प्यार की जो फेंक दीं थी बेकार समझकर चल चुनें तुम और मैंहर टुकड़ा उस नेमत का और बुनें एक रज़ाई छुप जाएं सभी उसमें आज तुम मेरे सीने पे मैं उसके कंधे पर सिर रखकर रो लें ज़रा कुछ हँस दें ज़रा यूँ ही ज़िंदगी  गुज़र बसर हो जाएगी शायद यह दुनिया बच जाएगी 
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मौत इक गीत रात गाती थी ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में तेरी तस्वीर उतरती जाती थी वो तिरा ग़म हो या ग़म-ए-आफ़ाक़ शम्मअ  सी दिल में झिलमिलाती थी ज़िन्दगी  को रह-ए-मोहब्बत में मौत ख़ुद रौशनी दिखाती थी जल्वा-गर हो रहा था कोई उधर धूप इधर फीकी पड़ती जाती थी ज़िन्दगी ख़ुद को...
Published 06/28/24
सिर छिपाने की जगह  | राजेश जोशी  न उन्होंने कुंडी खड़खड़ाई न दरवाज़े पर लगी घंटी बजाई अचानक घर के अन्दर तक चले आए वे लोग उनके सिर और कपड़े कुछ भीगे हुए थे मैं उनसे कुछ पूछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि शायद तुमने हमें पहचाना नहीं । हाँ...पहचानोगे भी कैसे बहुत बरस हो गए मिले...
Published 06/27/24
Published 06/27/24