Sahil Aur Samandar | Sarwar
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Description
साहिल और समंदर | सरवर  ऐ समंदर क्यों इतना शोर करते हो  क्या कोई दर्द अंदर रखते हो  यूं हर बार साहिल से तुम्हारा टकराना  किसी के रोके जाने के खिलाफ तो नहीं  पर मुझको तुम्हारी लहरें याद दिलाती हैं  कोशिश से बदल जाते हैं हालात  तुमने ढाला है साहिलों को  बदला है उनके जबीनों को  मुझको ऐसा मालूम पड़ता है  कि तुम आकर लेते हो  बौसा साहिलों के हज़ार  ये मोहब्बत है तुम्हारी उस साहिल के लिए  जो छोड़ता नहीं है तुम्हारा साथ  काश इंसान भी साहिल और समंदर होता  कितने भी बिगड़ते हालात  फिर भी होते साथ  साहिल और समंदर 
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मौत इक गीत रात गाती थी ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में तेरी तस्वीर उतरती जाती थी वो तिरा ग़म हो या ग़म-ए-आफ़ाक़ शम्मअ  सी दिल में झिलमिलाती थी ज़िन्दगी  को रह-ए-मोहब्बत में मौत ख़ुद रौशनी दिखाती थी जल्वा-गर हो रहा था कोई उधर धूप इधर फीकी पड़ती जाती थी ज़िन्दगी ख़ुद को...
Published 06/28/24
सिर छिपाने की जगह  | राजेश जोशी  न उन्होंने कुंडी खड़खड़ाई न दरवाज़े पर लगी घंटी बजाई अचानक घर के अन्दर तक चले आए वे लोग उनके सिर और कपड़े कुछ भीगे हुए थे मैं उनसे कुछ पूछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि शायद तुमने हमें पहचाना नहीं । हाँ...पहचानोगे भी कैसे बहुत बरस हो गए मिले...
Published 06/27/24
Published 06/27/24