Chithi Hai Kissi Dukhi Mann Ki | Kunwar Bechain
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Description
 चिट्ठी है किसी दुखी मन की |  कुँवर बेचैन  बर्तन की यह उठका-पटकी यह बात-बात पर झल्लाना चिट्ठी है किसी दुखी मन की। यह थकी देह पर कर्मभार इसको खाँसी, उसको बुखार जितना वेतन, उतना उधार नन्हें-मुन्नों को गुस्से में हर बार, मारकर पछताना चिट्ठी है किसी दुखी मन की। इतने धंधे! यह क्षीणकाय- ढोती ही रहती विवश हाय खुद ही उलझन, खुद ही उपाय आने पर किसी अतिथि जन के दुख में भी सहसा हँस जाना चिट्ठी है किसी दुखी मन की।
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मौत इक गीत रात गाती थी ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में तेरी तस्वीर उतरती जाती थी वो तिरा ग़म हो या ग़म-ए-आफ़ाक़ शम्मअ  सी दिल में झिलमिलाती थी ज़िन्दगी  को रह-ए-मोहब्बत में मौत ख़ुद रौशनी दिखाती थी जल्वा-गर हो रहा था कोई उधर धूप इधर फीकी पड़ती जाती थी ज़िन्दगी ख़ुद को...
Published 06/28/24
सिर छिपाने की जगह  | राजेश जोशी  न उन्होंने कुंडी खड़खड़ाई न दरवाज़े पर लगी घंटी बजाई अचानक घर के अन्दर तक चले आए वे लोग उनके सिर और कपड़े कुछ भीगे हुए थे मैं उनसे कुछ पूछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि शायद तुमने हमें पहचाना नहीं । हाँ...पहचानोगे भी कैसे बहुत बरस हो गए मिले...
Published 06/27/24
Published 06/27/24