Rok Sako To Roko | Poonam Shukla
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रोक सको तो रोको | पूनम शुक्ला  उछलेंगी ये लहरें अपनी राह बना लेंगी ये बल खाती सरिताएँ अपनी इच्छाएँ पा लेंगी रोको चाहे जितना भी ये झरने शोर मचाएँगे रोड़े कितने भी डालो कूद के ये आ जाएँगे चाहे ऊँची चट्टानें हों विहंगों का वृंद बसेगा सूखती धरा भले हो पुष्पों का झुंड हँसेगा हो रात घनेरी जितनी रोशनी का पुंज उगेगा रोक सको तो रोको यम भी विस्मित चल देगा डालो चाहे जितने विघ्न चाहे जितने करो प्रयत्न रोक नहीं सकते तुम हमको पाने से जीवन के कुछ रत्न ।
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मेरे बेटे | कविता कादम्बरी मेरे बेटे                                                       कभी इतने ऊँचे मत होना  कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो  उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ  न कभी इतने बुद्धिजीवी  कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग  इतने इज़्ज़तदार भी न होना  कि मुँह के बल गिरो तो...
Published 06/26/24
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Published 06/25/24
Published 06/25/24