Andhera Bhi Ek Darpan Hai | Anupam Singh
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Description
अँधेरा भी एक दर्पण है | अनुपम सिंह  अँधेरा भी एक दर्पण है  साफ़ दिखाई देती हैं सब छवियाँ यहाँ काँटा तो गड़ता ही है फूल भी भय देता है कभी नहीं भूली अँधेरे में गही बाँह पृथ्वी सबसे उच्चतम बिन्दु पर काँपी थी जल काँपा था काँपे थे सभी तत्त्व वह भी एक महाप्रलय था आँधेरे से सन्धि चाहते दिशागामी पाँव टकराते हैं आकाश तक खिंचे तम के पर्दे से जीवन-मृत्यु और भय का इतना रोमांच! भावों की पराकाष्ठा है यह अँधेरा अँधेरे की घाटी में सीढ़ीदार उतरन नहीं होती सीधे ही उतरना पड़ता है मुँह के बल अँधेरे के आँसू वही देखता है जिसके होती है अँधेरे की आँख। उजाले के भ्रम से कहीं अच्छा है इस दर्पण को निहारते देखूँ काँपती पृथ्वी को तत्वों के टकराव को अँधेरे की देह धर उतरूँ उस बिन्दु पर जहाँ सृजित होता है अँधेरा तो उजाले में मेरी लाश आएगी यह कविता के लिए जीवन होगा।
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मेरे बेटे | कविता कादम्बरी मेरे बेटे                                                       कभी इतने ऊँचे मत होना  कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो  उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ  न कभी इतने बुद्धिजीवी  कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग  इतने इज़्ज़तदार भी न होना  कि मुँह के बल गिरो तो...
Published 06/26/24
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Published 06/25/24
Published 06/25/24