Bhasha | Snehmayi Chaudhary
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भाषा | स्नेहमयी चौधरी यह नहीं कि  उसे कोई शिकायत नहीं,  लेकिन अब वह अपने पक्ष में  कोई तर्क न देगी,  न चाहेगी—  लगाए गए आरोपों का  कोई निराकरण।  यह नहीं कि  उसके पास कहने को  कुछ नहीं,  शायद यह कि  बहुत कुछ है।  अब कोई न पूछे  उसके निजी दस्तावेज़,  यही तो उसकी संपत्ति है।  यद्यपि निष्क्रिय विद्रोह  आज की भाषा नहीं :  यह नहीं कि वह जानती नहीं।  शायद यही उसके लिए  सही भाषा की तलाश का  एक तरीक़ा है। 
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मेरे बेटे | कविता कादम्बरी मेरे बेटे                                                       कभी इतने ऊँचे मत होना  कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो  उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ  न कभी इतने बुद्धिजीवी  कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग  इतने इज़्ज़तदार भी न होना  कि मुँह के बल गिरो तो...
Published 06/26/24
बाद के दिनों में  प्रेमिकाएँ | रूपम मिश्रा  बाद के दिनों में प्रेमिकाएँ पत्नियाँ बन गईं वे सहेजने लगीं प्रेमी को जैसे मुफलिसी के दिनों में अम्मा घी की गगरी सहेजती थीं वे दिन भर के इन्तजार के बाद भी ड्राइव करते प्रेमी से फोन पर बात नहीं करतीं वे लड़ने लगीं कम सोने और ज़्यादा शराब पीने पर प्रेमी जो...
Published 06/25/24
Published 06/25/24